Featured Posts
Windows
Google
Gadgets
Apple
Recent Articles

Vahini la zavalo - marathi Hindi sex kahani

Vahini la zavalo - marathi Hindi sex kahani Mai jab bhiBhaiya ke gharjata hu to mujhe, hamesh se hi vahini ko dekhkar use chodane ki ichchyahoti hai. Uska sunder sa chehare ko dekh kar na jane maine kitne barmuthth mari hai. Par use nahi chod paya. Sadi ke baad se hi Bhaiyahardam kaam karne ke liye bahar hi rahe hai, [...]

04 Dec 2016 | 0 commentsView Post

Chachi ki pyaas - Hindi sex kahani

Chachi ki pyaas - Hindi sex kahani Hi friends my name is Mr H (Code name) yeh story jo m app ko sonany ja raha hon sachi kahani hay please comment Kr k feedback zaroor dijya ga pehly m apny bary m batata chaloon hight 5.11 hay mery laan ka size 6 inch hay aur age 23 hay m abi parh raha hon ab story ki tarf ata hon[...]

04 Dec 2016 | 2 commentsView Post

Bahen our didi ki eksath chudai

Bahen our didi ki eksath chudai Meri shadi ho chuki hai, meri biwi ka naam hai simran pyar se main use simi bulata hu, simi bahut sexy to nahin pur uske boobs bade mast hai... Size main bhi baade hai, aur us par chote golai wali par nokdar pointed type ki red nipples, jab simi ko sex chadta hai tab nipples ki lamb[...]

04 Dec 2016 | 0 commentsView Post

Chupke Say Behan Ki Chudai Ki

Chupke Say Behan Ki Chudai KiMera naam rohit hai aur punjab mein rehta hun meri umer 20 saal hain jo kahani mein aap sab ko batanay jaa raha hun woh 3 saal pehle ki kahani hain aur meray pariwaar mein 2 bhai, aur ek 18 saal ki behan hai, behan ka naam neetu hain, pita jee ke death ko 5 saal hogaye hai aur hum jaya[...]

04 Dec 2016 | 1 commentsView Post

Neend main bhabi ki chudai

Neend main bhabi ki chudai Hello dosto , meri kahani tab ki hai jab main ba final me tha aur apni bhaya bhabi ke paas delhi main rehtha tha aur bhaiya noida main ek company main kaam karte the,bhabi dekhna main bahut hi sunder hai aur bhaiya se kafi pyaar bhi karthi hai aur main bhi unhe poori izzat deta hoo. Ek[...]

04 Dec 2016 | 1 commentsView Post

धोबन और उसका बेटा-PART1 OF THE STORY

Indian Sex Stories|Hindi sexy stories|Marathi sexyStories|Erotic stories | Kamdhund katha|sambhog katha|sex katha| Chodan|Hindi Sex Stories
धोबन और उसका बेटा-PART1 OF THE STORY

बात बहुत पुरानी है पर आज आप लोगो के साथ बाटने का मन किया इसलिए बता रहा हूँ . हमारा परिवारिक काम धोबी (वाशमॅन) का है. हम लोग एक छोटे से गाँव में रहते हैं और वहां धोबी का एक ही घर है इसीलिए हम लोग को ही गाँव के सारे कपड़े साफ करने को मिलते थे. मेरे परिवार में मैं , माँ और पिताजी है. मेरी उमर इस समय 15 साल की हो गई थी और मेरा सोलहवां साल चलने लगा था. गाँव के स्कूल में ही पढ़ाई लिखाई चालू थी. हमारा एक छोटा सा खेत था जिस पर पिताजी काम करते थे. मैं और माँ ने कपड़े साफ़ करने का काम संभाल रखा था. कुल मिला कर हम बहुत सुखी सम्पन थे और किसी चीज़ की दिक्कत नही थी. हम दोनो माँ - बेटे हर सप्ताह में दो बार नदी पर जाते थे और सफाई करते थे फिर घर आकर उन कपड़ो की स्त्री कर के उन्हे वापस लौटा कर फिर
से पुराने गंदे कपड़े एकत्र कर लेते थे. हर बुधवार और शनिवार को मैं सुबह 9 बजे के समय मैं और माँ एक छोटे से गधे पर पुराने कपड़े लाद कर नदी की ओर निकल पड़ते . हम गाँव के पास बहने वाली नदी में कपड़े ना धो कर गाँव से थोड़ी दूर जा कर सुनसान जगह पर कपड़े धोते थे क्योंकि गाँव के पास वाली नदी पर साफ पानी नही मिलता था और हमेशा भीड़ लगी रहती थी.
मेरी माँ 34-35 साल के उमर की एक बहुत सुंदर गोरी औरत है. ज़यादा लंबी तो नही परन्तु उसकी लंबाई 5 फुट 3 इंच की है और मेरी 5 फुट 7 इंच की है. सबसे आकर्षक उसके मोटे मोटे चुत्तर और नारियल के जैसी स्तन थे ऐसा लगते थे जैसे की ब्लाउज को फाड़ के निकल जाएँगे और भाले की तरह से नुकीले थे. उसके चूतर भी कम सेक्सी नही थे और जब वो चलती थी तो ऐसे मटकते थे कि देखने वाले के उसके हिलते गांड को देख कर हिल जाते थे. पर उस वक़्त मुझे इन बातो का कम ही ज्ञान था फिर भी तोरा बहुत तो गाँव के लड़को की साथ रहने के कारण पता चल ही गया था. और जब भी मैं और माँ कपड़े धोने जाते तो मैं बड़ी खुशी के साथ कपड़े धोने उसके साथ जाता था. जब मा कपड़े को नदी के किनारे धोने के लिए बैठती थी तब वो अपनी साड़ी और पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा लेती थी और फिर पीछे एक पत्थर पर बैठ कर आराम से दोनो टाँगे फैला कर जैसा की औरते पेशाब करने वक़्त करती है कपरो को साफ़ करती थी. मैं भी अपनी लूँगी को जाँघ तक उठा कर कपड़े साफ करता रहता था. इस स्थिति में मा की गोरी गोरी टाँगे मुझे देखने को मिल जाती थी और उसकी सारी भी सिमट कर उसके ब्लाउस के बीच में आ जाती थी और उसके मोटे मोटे चुचो के ब्लाउस के उपर से दर्शन होते रहते थे. कई बार उसकी सारी जेंघो के उपर तक उठ जाती थी और ऐसे समय में उसकी गोरी गोरी मोटी मोटी केले के ताने जैसे चिकनी जाँघो को देख कर मेरा लंड खरा हो जाता था. मेरे मन में कई सवाल उठने लगते फिर मैं अपना सिर झटक कर काम करने लगता था. मैं और मा कपरो की सफाई के साथ-साथ तरह-तरह की गाँव - घर की बाते भी करते जाते कई बार हम उस सुन-सन जगह पर ऐसा कुच्छ दिख जाता था जिसको देख के हम दोनो एक दूसरे से अपना मुँह च्छुपाने लगते थे.
कपड़े धोने के बाद हम वही पर नहाते थे और फिर साथ लाए हुआ खाना खा नदी के किनारे सुखाए हुए कपड़े को इक्कथा कर के घर वापस लौट जाते थे. मैं तो खैर लूँगी पहन कर नदी के अंदर कमर तक पानी में नहाता था, मगर मा नदी के किनारे ही बैठ कर नहाती थी. नहाने के लिए मा सबसे पहले अपनी सारी उतरती थी. फिर अपने पेटिकोट के नारे को खोल कर पेटिकोट उपर को सरका कर अपने दाँत से पाकर लेती थी इस तरीके से उसकी पीठ तो दिखती थी मगर आगे से ब्लाउस पूरा धक जाता था फिर वो पेटिकोट को दाँत से पाकरे हुए ही अंदर हाथ डाल कर अपने ब्लाउस को खोल कर उतरती थी. और फिर पेटिकोट को छाति के उपर बाँध देती थी जिस से उसके चुचे पूरी तरह से पेटिकोट से ढक जाते थे और कुच्छ भी नज़र नही आता था और घुटनो तक पूरा बदन ढक जाता था. फिर वो वही पर नदी के किनारे बैठ कर एक बारे से जाग से पानी भर भर के पहले अपने पूरे बदन को रगर- रगर कर सॉफ करती थी और साबुन लगाती थी फिर नदी में उतर कर नहाती थी.  


मा की देखा देखी मैने भी पहले नदी के किनारे बैठ कर अपने बदन को साफ करना सुरू कर दिया फिर मैं नदी में डुबकी लगा के नहाने लगा. मैं जब साबुन लगाता तो मैं अपने हाथो को अपने लूँगी के घुसा के पूरे लंड आंड गांद पर चारो तरफ घुमा घुमा के साबुन लगा के सफाई करता था क्यों मैं भी मा की तरह बहुत सफाई पसंद था. जब मैं ऐसा कर रहा होता तो मैने कई बार देखा की मा बरे गौर से मुझे देखती रहती थी और अपने पैर की आरिया पठार पर धीरे धीरे रगर के सॉफ करती होती. मैं सोचता था वो सयद इसलिए देखती है की मैं ठीक से सफाई करता हू या नही इसलिए मैं भी बारे आराम से खूब दिखा दिखा के साबुन लगता था की कही दाँत ना सुनने को मिल जाए की ठीक से सॉफ सफाई का ध्यान नही रखता हू . मैं अपने लूँगी के भीतर पूरा हाथ डाल के अपने लौरे को अcचे तरीके से साफ करता था इस काम में मैने नोटीस किया कई बार मेरी लूँगी भी इधर उधर हो जाती थी जससे मा को मेरे लंड की एक आध जहलक भी दिख जाती थी. जब पहली बार ऐसा हुआ तो मुझे लगा की शायद मा डातेगी मगर ऐसा कुच्छ नही हुआ. तब निश्चिंत हो गया और मज़े से अपना पूरा ढयन सॉफ सफाई पर लगाने लगा.
मा की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार ललचा जाता था और मैं भी चाहता था की मैं उसे साफाई करते हुए देखु पर वो ज़यादा कुच्छ देखने नही देती थी और घुटनो तक की सफाई करती थी और फिर बरी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटिकोट के अंदर ले जा कर अपनी च्चती की सफाई करती जैसे ही मैं उसकी ओर देखता तो वो अपना हाथ च्चती में से निकल कर अपने हाथो की सफाई में जुट जाती थी. इसीलिए मैं कुछ नही देख पता था और चुकी वो घुटनो को मोड़ के अपने छाति से सताए हुए होती थी इसीलये पेटिकोट के उपर से छाति की झलक मिलनी चाहिए वो भी नही मिल पाती थी. इसी तरह जब वो अपने पेटिकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपने जेंघो और उसके बीच की सफाई करती थी ये ध्यान रखती की मैं उसे देख रहा हू या नही. जैसे ही मैं उसकी ओर घूमता वो झट से अपना हाथ निकाल लेती थी और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी. मैं मन मसोस के रह जाता था. एक दिन सफाई करते करते मा का ध्यान शायद मेरी तरफ से हट गया था और बरे आराम से अपने पेटिकोट को अपने जेंघो तक उठा के सफाई कर रही थी. उसकी गोरी चिकनी जघो को देख कर मेरा लंड खरा होने लगा और मैं जो की इस वक़्त अपनी लूँगी को ढीला कर के अपने हाथो को लूँगी के अंदर डाल कर अपने लंड की सफाई कर रहा था धीरे धीरे अपने लंड को मसल्ने लगा. तभी अचानक मा की नज़र मेरे उपर गई और उसने अपना हाथ निकल लिया और अपने बदन पर पानी डालती हुई बोली "क्या कर रहा है जल्दी से नहा के काम ख़तम कर" मेरे तो होश ही उर गये और मैं जल्दी से नदी में जाने के लिए उठ कर खरा हो गया, पर मुझे इस बात का तो ध्यान ही नही रहा की मेरी लूँगी तो खुली हुई है और मेरी लूँगी सरसारते हुए नीचे गिर गई. मेरा पूरा बदन नंगा हो गया और मेरा 8.5 इंच का लंड जो की पूरी तरह से खरा था धूप की रोशनी में नज़र आने लगा. मैने देखा की मा एक पल के लिए चकित हो कर मेरे पूरे बदन और नंगे लंड की ओर देखती रह गई मैने जल्दी से अपनी लूँगी उठाई और चुप चाप पानी में घुस गया. मुझे बरा डर लग रहा था की अब क्या होगा अब तो पक्की डाँट परेगी और मैने कनखियो से मा की ओर देखा तो पाया की वो अपने सिर को नीचे किया हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और अपने पैरो पर अपने हाथ चला के सफाई कर रही है. मैं ने राहत की सांश ली. और चुप चाप नहाने लगा. उस दिन हम जायदातर चुप चाप ही रहे. घर वापस लौटते वक़्त भी मा ज़यादा नही बोली. दूसरे दिन से मैने देखा की मा मेरे साथ कुछ ज़यादा ही खुल कर हँसी मज़ाक करती रहती थी और हमरे बीच डबल मीनिंग में भी बाते होने लगी थी. पता नही मा को पता था या नही पर मुझे बरा मज़ा आ रहा था.
मैने जब भी किसी के घर से कापरे ले कर वापस लौटता तो
माँ बोलती "क्यों राधिया के कापरे भी लाया है धोने के लिए क्या".
तो मैं बोलता, `हा',
इसपर वो बोलती "ठीक है तू धोना उसके कापरे बरा गंदा करती है. उसकी सलवार तो मुझसे धोइ नही जाती". फिर पूछती थी "अंदर के कापरे भी धोने के लिए दिए है 


क्या" अंदर के कपरो से उसका मतलब पनटी और ब्रा या फिर अंगिया से होता था,
मैं कहता नही तो इस पर हसने लगती और कहती "तू लरका है ना शायद इसीलिए तुझे नही दिया होगा, देख अगली बार जब मैं माँगने जाऊंगी तो ज़रूर देगी" फिर अगली बार जब वो कापरे लाने जाती तो सच मुच में वो उसकी पनटी और अंगिया ले के आती थी और बोलती "देख मैं ना कहती थी की वो तुझे नही देगी और मुझे दे देगी, तू लरका है ना तेरे को देने में शरमाती होंगी, फिर तू तो अब जवान भी हो गया है" मैं अंजान बना पुछ्ता क्या देने में शरमाती है राधिया तो मुझे उसकी पनटी और ब्रा या अंगिया फैला कर दिखती और मुस्कुराते हुए बोलती "ले खुद ही देख ले" इस पर मैं शर्मा जाता और कनखियों से देख कर मुँह घुमा लेता तो वो बोलती "अर्रे शरमाता क्यों है, ये भी तेरे को ही धोना परेगा" कह के हसने लगती. हलकी आक्च्युयली ऐसा कुच्छ नही होता और जायदातर मर्दो के कापरे मैं और औरतो के मा ही धोया करती थी क्योंकि उस में ज़यादा मेहनत लगती थी, पर पता नही क्यों मा अब कुछ दीनो से इस तरह की बातो में ज़यादा इंटेरेस्ट लेने लगी थी. मैं भी चुप- चाप उसकी बाते सुनता रहता और मज़े से जवाब देता रहता था.जब हम नदी पर कापरे धोने जाते तब भी मैं देखता था की मा अब पहले से थोरी ज़यादा खुले तौर पर पेश आती थी. पहले वो मेरी तरफ पीठ करके अपने ब्लाउस को खोलती थी और पेटिकोट को अपनी च्चती पर बाँधने के बाद ही मेरी तरफ घूमती थी, पर अब वो इस पर ध्यान नही देती और मेरी तरफ घूम कर अपने ब्लाउस को खोलती और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती, जब की पहले वो मेरे नहाने तक इंतेज़ार करती थी और जब मैं थोरा दूर जा के बैठ जाता तब पूरा नहाती थी. मेरे नहाते वाक़ूत उसका मुझे घूर्ना बदस्तूर जारी था और मेरे में भी हिम्मत आ गई थी और मैं भी जब वो अपने च्चातियों की सफाई कर रही होती तो उसे घूर कर देखता रहता. मा भी मज़े से अपने पेटिकोट को जेंघो तक उठा कर एक पठार पर बैठ जाती और साबुन लगाती और ऐसे आक्टिंग करती जैसे मुझे देख ही नही रही है. उसके दोनो घुटने मूरे हुए होते थे और एक पैर थोरा पहले आगे पसारती और उस पर पूरा जाँघो तक साबुन लगाती थी फिर पहले पैर को मोरे कर दूसरे पैर को फैला कर साबुन लगाती. पूरा अंदर तक साबुन लगाने के लिए वो अपने घुटने मोरे रखती और अपने बाए हाथ से अपने पेटिकोट को थोरा उठा के या अलग कर के दाहिने हाथ को अंदर डाल के साबुन लगाती. मैं चुकी थोरी दूर पर उसके बगल में बैठा होता इसीलिए मुझे पेटिकोट के अनादर का नज़ारा तो नही मिलता था, जिसके कारण से मैं मन मसोस के रह जाता था की काश मैं सामने होता, पर इतने में ही मुझे ग़ज़ब का मज़ा आ जाता था. और उसकी नंगी चिकनी चिकनी जंघे उपर तक दिख जाती थी. मा अपने हाथ से साबुन लगाने के बाद बरे मग को उठा के उसका पानी सीधे अपने पेटिकोट के अंदर दल देती और दूसरे हाथ से साथ ही साथ रगर्ति भी रहती थी. ये इतना जबरदस्त सीन होता था की मेरा तो लंड खरा हो के फुफ्करने लगता और मैं वही नहाते नाहटे अपने लंड को मसल्ने लगता. जब मेरे से बर्दस्त नही होता तो मैं सिडा नदी में कमर तक पानी में उतर जाता और पानी के अंदर हाथ से अपने लंड को पाकर कर खरा हो जाता और मा की तरफ घूम जाता. जब वो मुझे पानी में इस तरह से उसकी तरफ घूम कर नहाते देखती तो वो मुस्कुरा के मेरी तरफ देखती हुई बोलती " ज़यादा दूर मत जाना किनारे पर ही नहा ले आगे पानी बहुत गहरा है", मैं कुकछ नही बोलता और अपने हाथो से अपने लंड को मसालते हुए नहाने की आक्टिंग करता रहता. इधर मा मेरी तरफ देखती हुई अपने हाथो को उपर उठा उठा के अपने कांख की सफाई करती कभी अपने हाथो को अपने पेटिकोट में घुसा के च्चती को साफ करती कभी जेंघो के बीच हाथ घुसा के खूब तेरज़ी से हाथ चलने लगती, दूर से कोई देखे तो ऐसा लगेगा के मूठ मार रही है और सयद मारती भी होगी. कभी कभी वो भी खरे हो नदी में उतर जाती और ऐसे में उसका पेटिकोट जो की उसके बदन चिपका हुआ होता था गीला होने
के कारण मेरी हालत और ज़यादा खराब कर देता था. पेटिकोट छिपकने के कारण उसकी बरी बरी चुचिया नुमाया हो जाती थी. कापरे के उपर से उसके बरे बरे मोटे मोटे निपल तक दिखने लगते थे. पेटिकोट उसके चूटरो से चिपक कर उसके गंद के दरार में फसा हुआ होता था और उसके बरे बरे चूतर साफ साफ दिखाई देते रहते थे. वो भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने आ के खरी हो के डुबकी लगाने लगती और मुझे अपने चुचियों का नज़ारा करवाती जाती. मैं तो वही नदी में ही लंड मसल के मूठ मार लेता था. हलकी मूठ मारना मेरी आदत नही थी घर पर मैं ये काम कभी नही करता था पर जब से मा के स्वाभाव में चेंज आया था नदी पर मेरी हालत ऐसे हो जाती थी की मैं मज़बूर हो जाता था. अब तो घर पर मैं जब भी इस्त्री करने बैठता तो मुझे बोलती जाती "देख ध्यान से इस्त्री करियो पिच्छली बार शयामा बोल रही थी की उसके ब्लाउस ठीक से इस्त्री नही थे" मैं भी बोल परता "ठीक है. कर दूँगा, इतना छ्होटा सा ब्लाउस तो पहनती है, ढंग से इस्त्री भी नही हो पति, पता नही कैसे काम चलती है इतने छ्होटे से ब्लाउस में" तो मा बोलती "अरे उसकी च्चाटिया ज़यादा बरी थोरे ही है जो वो बरा ब्लाउस पहनेगी, हा उसकी सास के ब्लाउस बहुत बरे बरे है बुधिया की च्चती पहर जैसी है" कह कर मा हासणे लगती. फिर मेरे से बोलती"तू सबके ब्लाउस की लंबाई चौरई देखता रहता है क्या या फिर इस्त्री करता है". मैं क्या बोलता चुप छाप सिर झुका कर स्त्री करते हुए धीरे से बोलता "अर्रे देखता कौन है, नज़र चली जाती है, बस". इस्त्री करते करते मेरा पूरा बदन पसीने से नहा जाता था. मैं केवल लूँगी पहने इस्त्री कर रहा होता था. मा मुझे पसीने से नहाए हुए देख कर बोलती "छ्होर अब तू कुच्छ आराम कर ले. तब तक मैं इस्त्री करती हू," मा ये काम करने लगती. थोरी ही देर में उसके माथे से भी पसीना चुने लगता और वो अपनी सारी खोल कर एक ओर फेक देती और बोलती "बरी गर्मी है रे, पता नही तू कैसे कर लेता है इतने कपरो की इस्त्री मेरे से तो ये गर्मी बर्दस्त नही होती" इस पर मैं वही पास बैठा उसके नंगे पेट, गहरी नाभि और मोटे चुचो को देखता हुआ बोलता, "ठंडा कर दू तुझे"? "कैसे करेगा ठंडा"? "डंडे वाले पंखे से मैं तुझे पंखा झल देता हू", फॅन चलाने पर तो इस्त्री ही ठंडी पर जाएगी". रहने दे तेरे डंडे वाले पँखे से भी कुच्छ नही होने जाने का, छ्होटा सा तो पंखा है तेरा". कह कर अपने हाथ उपर उठा कर माथे पर छलक आए पसीने को
पोछती तो मैं देखता की उसकी कांख पसीने से पूरी भीग गई है. 


और उसके गर्देन से बहता हुआ पसीना उसके ब्लाउस के अंदर उसके दोनो चुचियों के बीच की घाटी मे जा कर उसके ब्लाउस को भेगा रहा होता. घर के अंदर वैसे भी वो ब्रा तो कभी पहनती नही थी इस कारण से उसके पतले ब्लाउस को पसीना पूरी तरह से भीगा देता था और, उसकी चुचिया उसके ब्लाउस के उपर से नज़र आती थी. कई बार जब वो हल्के रंगा का ब्लाउस पहनी होती तो उसके मोटे मोटे भूरे रंग के निपल नज़र आने लगते. ये देख कर मेरा लंड खरा होने लगता था. कभी कभी वो इस्त्री को एक तरफ रख के अपने पेटिकोट को उठा के पसीना पोच्छने के लिए अपने सिर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौके के इंतेज़ार में बैठा रहता था, क्योंकि इस वाक़ूत उसकी आँखे तो पेटिकोट से ढक जाती थी पर पेटिकोट उपर उठने के कारण उसका टाँगे पूरा जाग तक नंगी हो जाती थी और मैं बिना अपनी नज़रो को चुराए उसके गोरी चिटी मखमली जाहनघो को तो जी भर के देखता था. मा अपने चेहरे का पसीना अपनी आँखे बंद कर के पूरे आराम से पोचहति थी और मुझे उसके मोटे कंडली के ख़भे जैसे जघो को पूरा नज़ारा दिखती थी. गाओं में औरते साधारणतया पनटी ना पहनती है और कई बार ऐसा हुआ की मुझे उसके झतो की हल्की सी झलक देखने को मिल जाती. जब वो पसीना पोच्च के अपना पेटिकोट नीचे करती तब तक मेरा काम हो चुका होता और मेरे से बर्दस्त करना संभव नही हो पता मैं जल्दी से घर के पिच्छवारे की तरफ भाग जाता अपने लंड के कारेपन को थोरा ठंडा करने के लिए.
जब मेरा लंड डाउन हो जाता तब मैं वापस आ जाता. मा पुचहति कहा गया था तो मैं बोलता "थोरी ठंडी हवा खाने बरी गर्मी लग रही थी" " ठीक किया बदन को हवा लगते रहने चाहिए, फिर तू तो अभी बरा हो रहा है तुझे और ज़यादा गर्मी लगती होगी"
" हा तुझे भी तो गर्मी लग रही होगी मा जा तू भी बाहर घूम कर आ जा थोरी गर्मी शांत हो जाएगी" और उसके हाथ से इस्त्री ले लेता. पर वो बाहर नही जाती और वही पर एक तरफ मोढ़े पर बैठ जाती अपने पैरो घुटने के पास से मोर कर और अपने पेटिकोट को घुटनो तक उठा के बीच में समेत लेती. मा जब भी इस तरीके से बैठती थी तो मेरा इस्त्री करना मुस्किल हो जाता था. उसके इस तरह बैठने से उसकी घुटनो से उपर तक की जांगे और दिखने लगती थी. "अर्रे नही रे रहने दे मेरी तो आदत पर गई है गर्मी बर्दस्त करने की"
"क्यों बर्दाश्त करती है गर्मी दिमाग़ पर चाड जाएगी जा बाहर घूम के आ जा ठीक हो जाएगा"
"जाने दे तू अपना काम कर ये गर्मी ऐसे नही शांत होने वाली, तेरा
बापू अगर समझदार होता तो गर्मी लगती ही नही, पर उसे क्या वो तो कारही देसी पी के सोया परा होगा" शाम होने को आई मगर अभी तक नही आया"
"आरे, तो इसमे बापू की क्या ग़लती है मौसम ही गर्मी का है गर्मी तो लगेगी ही"
"अब मैं तुझे कैसे समझोउ की उसकी क्या ग़लती है, काश तू थोरा समझदार होता" कह कर मा उठ कर खाना बनाना चल देती मैं भी सोच में परा हुआ रह जाता की आख़िर मा चाहती क्या है. रात में जब खाना खाने का टाइम आता तो मैं नहा धो कर किचन में आ जाता, खाना खाने के लिए. मा भी वही बैठा के मुझे
गरम गरम रोटिया सेक देती जाती और हम खाते रहते. इस समय भी वो पेटिकोट और ब्लाउस में ही होती थी क्यों की किचन में गर्मी होती थी और उसने एक छ्होटा सा पल्लू अपने कंधो पर डाल रखा होता. उसी से अपने माथे का पसीना पोचहति रहती और खाना खिलती जाती थी मुझे. हम दोनो साथ में बाते भी कर रहे होते.
मैने मज़ाक करते हुए बोलता " सच में मा तुम तो गरम इस्त्री (वुमन) हो". वो पहले तो कुच्छ साँझ नही पाती फिर जब उसकी समझ में आता की मैं आइरन इस्त्री ना कह के उसे इस्त्री कह रहा हू तो वो हसने लगती और कहती "हा मैं गरम इस्त्री हू", और अपना चेहरा आगे करके बोलती "देख कितना पसीना आ रहा है, मेरी गर्मी दूर कर दे" " मैं तुझे एक बात बोलू तू गरम चीज़े मत खाया कर, ठंडी चीज़ खाया कर"
"अक्चा, कौन से ठंडी चीज़ मैं ख़ौ की मेरी गर्मी दूर हो जाएगी"
"केले और बैगान की सब्जिया खाया कर"
इस पर मा का चेहरा लाल हो जाता था और वो सिर झुका लेती और
धीरे से बोलती " अर्रे केले और बैगान की सब्जी तो मुझे भी आक्ची लगती है पर कोई लाने वाला भी तो हो, तेरा बापू तो ये सब्जिया लाने से रहा, ना तो उसे केला पसंद है ना ही उसे बैगान".
"तू फिकर मत कर मैं ला दूँगा तेरे लिए"
"ही, बरा अक्चा बेटा है, मा का कितना ध्यान रक्ता है"
मैं खाना ख़तम करते हुए बोलता, "चल अब खाना तो हो गया ख़तम, तू भी जा के नहा ले और खाना खा ले", "अर्रे नही अभी तो तेरा बापू देसी चढ़ा के आता होगा, उसको खिला दूँगी तब खूँगी, तब तक नहा लेती हू" तू जेया और जा के सो जा, कल नदी पर भी जाना है". मुझे भी ध्यान आ गया की हा कल तो नदी पर भी जाना है मैं छत पर चला गया. गर्मियों में हम तीनो लोग छत पर ही सोया करते थे.सुबह सूरज की पहली किरण के साथ जब मेरी नींद खुली तो देखा एक तरफ बापू अभी भी लुढ़का हुआ है और मा शायद पहले ही उठ कर जा चुकी थी मैं भी जल्दी से नीचे पहुचा तो देखा की मा बाथरूम से आ के हॅंडपंप पर अपने हाथ पैर धो रही थी. मुझे देखते ही बोली "चल जल्दी से तैयार हो जा मैं खाना बना लेती हू फिर जल्दी से नदी पर निकाल जाएँगे, तेरे बापू को भी आज शहर जाना है बीज लाने, मैं उसको भी उठा देती हू". थोरी देर में जब मैं वापस आया तो देखा की बापू भी उठ चुक्का था और वो बाथरूम जाने की तैय्यारी में था. मैं भी अपने काम में लग गया और सारे कपरो के गत्थर बना के तैइय्यार कर दिया. थोरी देर में हम सब लोग तैइय्यार हो गये.

घर को ताला लगाने के बाद बापू बस पकरने के लिए चल दिया और हम दोनो नदी की ओर. मैने मा से पुचछा की बापू कब तक आएँगे तो वो बोली "क्या पता कब आएगा मुझे तो बोला है की कल आ जौंगा पर कोई भरोसा है तेरे बापू का, चार दिन भी लगा देगा, ". हम लोग नदी पर पहुच गये और फिर अपने काम में लग गये, कपरो की सफाई के बाद मैने उन्ह एक तरफ सूखने के लिए डाल दिया और फिर हम दोनो ने नहाने की तैइय्यारी सुरू कर दी. मा ने भी अपनी सारी उतार के पहले उसको साफ किया फिर हर बार की तरह अपने पेटिकोट को उपर चढ़ा के अपनी ब्लाउस निकली फिर उसको साफ किया और फिर अपने बदन को रगर रगर के नहाने लगी. मैं भी बगल में बैठा उसको निहारते हुए नहाता रहा बेकयाली में एक दो बार तो मेरी लूँगी भी मेरे बदन पर से हट गई थी पर अब तो ये बहुत बार हो चक्का था इसलिए मैने इस पर कोई ध्यान नही दिया, हर बार की तरह मा ने भी अपने हाथो को पेटिकोट के अंदर डाल के खूब रगर रगर के नहाना चालू रखा. थोरी देर बाद मैं नदी में उतर गया मा ने भी नदी में उतर के एक दो डुबकिया लगाई और फिर हम दोनो बाहर आ गये. मैने अपने कापरे चेंज कर लिए और पाजामा और कुर्ता पहन लिया. मा ने भी पहले अपने बदन को टॉवेल से सूखाया फिर अपने पेटिकोट के इज़रबंद को जिसको की वो छाती पर बाँध के रखती थी पर से खोल लिया और अपने दंटो से पेटिकोट को पकर लिया, ये उसका हमेशा का काम था, मैं उसको पठार पर बैठ के एक तक देखे जा रहा था. इस प्रकार उसके दोनो हाथ फ्री हो गये थे अब उसने ब्लाउस को पहन ने के लिए पहले उसने अपना बाया हाथ उसमे
घुसाया फिर जैसे ही वो अपना दाहिना हाथ ब्लाउस में घुसने जा रही थी की पता नही क्या हुआ उसके दंटो से उसकी पेटिकोट च्छुत गई. और सीधे सरसरते हुए नीचे गिर गई. और उसका पूरा का पूरा नंगा बदन एक पल के लिए मेरी आँखो के सामने दिखने लगा. उसके बरी बरी चुचिया जिन्हे मैने अब तक कपरो के उपर से ही देखा था और उसके भारी बाहरी चूतर और उसकी मोटी मोटी जांघे और झाट के बॉल सब एक पल के लिए मेरी आँखो के सामने नंगे हो गये. पेटिकोट के नीचे गिरते ही उसके साथ ही मा भी है करते हुए तेज़ी के साथ नीचे बैठ गई. मैं आँखे फर फर के देखते हुए गंज की तरह वही पर खरा रह गया. मा नीचे बैठ कर अपने पेटिकोट को फिर से समेत्टी हुई बोली " ध्यान ही नही रहा मैं तुझे कुच्छ बोलना चाहती थी और ये पेटिकोट दंटो से च्छुत गया" मैं कुच्छ नही बोला. मा फिर से खरी हो गई और अपने ब्लाउस को पहनने लगी. फिर उसने अपने पेटिकोट को नीचे किया और बाँध लिया. फिर सारी पहन कर वो वही बैठ के अपने भीगे पेटिकोट को साफ कर के तरय्यर हो गई. फिर हम दोनो खाना खाने लगे. खाना खाने के बाद हम वही पेर की च्चव में बैठ कर आराम करने लगे. जगह सुन सन थी ठंडी हवा बह रही थी. मैं पेर के नीचे लेते हुए मा की तरफ घुमा तो वो भी मेरी तरफ घूमी. इस वाक़ूत उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुरहत पसरी हुई थी. मैने पुचछा "मा क्यों हास रही हो", तो वो बोली "मैं "झूट मत बोलो तुम मुस्कुरा रही हो"
"क्या करू, अब हसने पर भी कोई रोक है क्या"
"नही मैं तो ऐसे ही पुच्छ रहा था, नही बताना है तो मत बताओ"
"अर्रे इतनी आक्ची ठंडी हवा बह रही है चेहरे पर तो मुस्कान आएगी ही . यहा पेर की छाव में कितना अच्छा लग रहा है, ठंडी ठंडी हवा चल रही है, और आज तो मैने
पूरा हवा खाया है" मा बोली
"पूरा हवा खाया है, वो कैसे"
"मैं पूरी नंगी जो हो गई थी, फिर बोली ही, तुझे मुझे ऐसे नही देखना चाहिए था,
"क्यों नही देखना चाहिए था"
"अर्रे बेवकूफ़, इतना भी नही समझता एक मा को उसके बेटे के सामने नंगा नही होना चाहिए था"
"कहा नंगी हुई थी तुम बस एक सेकेंड के लिए तो तुम्हारा पेटिकोट नीचे गिर गया था" (हालाँकि वही एक सेकेंड मुझे एक घंटे के बराबर लग रहा था).
"हा फिर भी मुझे नंगा नही होना चाहिए था, कोई जानेगा तो क्या कहेगा की मैं अपने बेटे के सामने नंगी हो गैट ही"


"कौन जानेगा, यहा पर तो कोई था भी नही तू बेकार में क्यों परेशन हो रही है"
"अर्रे नही फिर भी कोई जान गया तो", फिर कुच्छ सोचती हुई बोली, अगर कोई नही जानेगा तो क्या तू मुझे नंगा देखेगा क्या", मैं और मा दोनो एक दूसरे के आमने सामने एक सूखे चादर पर सुन-सान जगह पर पेर के नीचे एक दूसरे की ओर मुँह कर के लेते हुए थे और मा की सारी उसके छाति पर से ढालाक गई थी. मा के मुँह से ये बात सुन के मैं खामोश रह गया और मेरी साँसे तेज चलने लगी. मा ने मेरी ओर देखते हुए पुकचा "क्या हुआ, " मैने कोई जवाब नही दिया और हल्के से मुस्कुराते हुए उसकी छातियो की तरफ देखने लगा जो उसकी तेज चलती सांसो के साथ उपर नीचे हो रहे थे. वो मेरी तरफ देखते हुए बोली "क्या हुआ मेरी बात का जवाब दे ना, अगर कोई जानेगा नही तो क्या तू मुझे नंगा देख लेगा"? इस पर मेरे मुँह से कुच्छ नही निकला और मैने अपना सिर नीचे कर लिया, मा ने मेरी तोड़ी पकर के
उपर उठाते हुए मेरे आँखो में झाँकते हुए पुकचा, "क्या हुआ रे,? बोल ना क्या तू मुझे नंगा देख, लेगा जैसे तूने आज देखा है,"
मैने कहा "है, मा, मैं क्या बोलू" मेरा तो गॅला सुख रहा था,
मा ने मेरे हाथ को अपने हाथो में ले लिया और कहा "इसका मतलब तू मुझे नंगा नही देख सकता, है ना". मेरे मुँह से निकाल गया- "है मा, छ्होरो ना," मैं हकलाते हुए बोला "नही मा ऐसा नही है".
"तो फिर क्या है, तू अपनी मा को नंगा देख लेगा क्या"
मैं क्या कर सकता था, वो तो तुम्हारा पेटिकोट नीचे गिर गया
तभी मुझे नंगा दिख गया नही तो मैं कैसे देख पाता,"
"वो तो मैं समझ गई, पर उस वाक़ूत तुझे देख के मुझे ऐसा लगा
जैसे की तू मुझे घूर रहा है.................इसिलिये पुचछा"
"है, मा ऐसा नही है, मैने तुम्हे बताया ना, तुम्हे बस ऐसा लगा होगा, "
"इसका मतलब तुझे अक्चा नही लगा था ना"
"है, मा छ्होरो", मैं हाथ च्छूराते हुए अपने चेहरे को च्छूपाते हुए बोला"
मा ने मेरा हाथ नही छ्होरा और बोली "सच सच बोल शरमाता क्यों है"
मेरे मुँह से निकाल गया "हा अक्चा लगा था", इस पर मा ने मेरे हाथ को पाकर के सीधे अपनी छाति पर रख दिया, और बोली "फिर से देखेगा मा को नंगा, बोल देखेगा?"
मेरी मुँह से आवाज़ नही निकाल पा रहा था मैने बरी मुस्किल से अपने अपने हाथो को उसके नुकीले गुदज छातियों पर स्थिर रख पा रहा था. ऐसे में मैं भला क्या जवाब देता? मेरे मुँह से एक क्रहने की सी आवाज़ निकली. मा ने मेरी थोड़ी पकर कर फिर से मेरे मुँह को उपर उठाया और बोली "क्या हुआ बोल ना शरमाता
क्यों है, जो बोलना है बोल" . मैं कुच्छ ना बोला थोरी देर तक उसके च्हूचियों पर ब्लाउस के उपार से ही हल्का सा मैने हाथ फेरा. फिर मैने हाथ खीच लिया. मा कुच्छ नही बोली गौर से मुझे देखती रही फिर पता ना क्या सोच कर वो बोली "ठीक मैं सोती हू यही पर बरी आक्ची हवा चल रही है, तू कपरो को देखते रहना और जो सुख
जाए उन्हे उठा लेना, ठीक है" और फिर मुँह घुमा कर एक तरफ सो गई. मैं भी चुप चाप वही आँख खोले लेता रहा, मा की चुचियाँ धीरे धीरे उपर नीचे हो रही थी. उसने अपना एक हाथ मोर कर अपने आँखो पर रखा हुआ था और दूसरा हाथ अपने बगल में रख कर सो रही थी. मैं चुप चाप उसे सोता हुआ देखता रहा, थोरी देर में उसकी उठती गिरती चुचियों का जादू मेरे उपर चल गया और मेरा लंड खरा होने लगा. मेरा दिल कर रहा था की काश मैं फिर से उन चुचियों को एक बार च्छू लू. मैने अपने आप को गालिया भी निकाली, क्या उल्लू का पता हू मैं भी जो चीज़ आराम से च्छुने को मिल रही थी तो उसे च्छुने की बजाए मैं हाथ हटा लिया. पर अब क्या हो सकता था. मैं चुप चाप वैसे ही बैठा रहा. कुच्छ सोच भी नही पा रहा था. फिर मैने सोचा की जब उस वाक़ूत मा ने खुद मेरा हाथ अपनी चुचियों पर रखा दिया था तो फिर अगर मैं खुद अपने मन से रखू तो शायद दाँटेगी नही, और फिर अगर दाँटेगी तो बोल दूँगा तुम्ही ने तो मेरा हाथ उस व्क़ुत पाकर कर रखा था, तो अब मैं अपने आप से रख दिया. सोचा शायद तुम बुरा नही मनोगी. यही सब सोच कर मैने अपने हाथो को धीरे से उसकी चुचियों पर ले जा के रख दिया, और हल्के हल्के सहलाने लगा. मुझे ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था मैने हल्के से उसकी सारी को पूरी तरह से उसके ब्लाउज पर से हटा दिया और फिर उसकी चुचियों को दबाया. ऊवू इतना ग़ज़ब का मज़ा आया की बता नही सकता, एकद्ूम गुदाज़ और सख़्त चुचियाँ थी मा की इस उमर में भी मेरा तो लंड खरा हो गया, और मैने अपने एक हाथ को चुचियों पर रखे हुए दूसरे हाथ से अपने लंड को मसल्ने लगा. जैसे जैसे मेरी बेताबी बढ़ रही थी वैसे वैसी मेरे हाथ दोनो जगहो पर तेज़ी के साथ चल रहे थे. मुझे लगता है की मैने मा की चुचियों को कुच्छ ज़्यादा ही ज़ोर से दबा दिया था, शायद इसीलिए मा की आँख खुल गई. और वो एकदम से हर्बराते उठ गई और अपने अचल को संभालते हुए अपनी चुचियों को ढक लिया और फिर, मेरी तरफ देखती हुई बोली, "हाय, क्या कर रहा था तू, हाय मेरी तो आँख लग गई थी?"
मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लंड पर था, और मेरे चेहरे का रंग उर गया था. मा ने मुझे गौर से एक पल के लिए देखा और सारा माजरा समझ गई और फिर अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कुरहत बिखेरते हुए बोली "हाय, देखो तो सही क्या सही काम कर रहा था ये? लरका, मेरा भी मसल रहा था और उधर अपना भी मसल रहा था".


वो अब एक दम से मेरे नज़दीक आ गई थी और उसकी गरम साँसे मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी. वो एक पल के लिए ऐसे ही मुझे देखती रही फिर मेरे थोड़ी पाकर कर मुझे उपर उठाते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए धीरे से बोली "क्यों रे बदमाश क्या कर रहा था, बोल ना क्या बदमसी कर रहा था अपनी मा के साथ" फिर मेरे फूले फूले गाल पाकर कर हल्के से मसल दिया. मेरे मुँह से तो आवाज़ नही निकाल रही थी, फिर उसने हल्के से अपना एक हाथ मेरे जाँघो पर रखा और सहलाते हुए बोली "है, कैसे खरा कर रखा है मुए ने" फिर सीधा पाजामा के उपर से मेरे खरे लंड जो की मा के जागने से थोरा ढीला हो गया था पर अब उसके हाथो स्पर्श पा के फिर से खरा होने लगा था पर उसने अपने हाथ रख दिया, "उई मा, कैसे खरा कर रखा है, क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था क्या, है, बेटा और मेरी इसको भी मसल रहा था, तू तो अब लगता है जवान हो गया है, तभी मैं काहु की जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गिरा ये लरका मुझे घूर घूर के क्यों देख रहा था, ही, इस लरके की तो अपनी मा के उपर ही बुरी नज़र है". अगर मैं नही जागती तो, तू तो अपना पानी निकाल के ही मानता ना, मेरे छातियों को दबा दबा के, उम्म्म... बोल, निकालता की ऩही पानी?"
"है, मा ग़लती हो गई,
"वाह रे तेरी ग़लती, कमाल की ग़लती है, किसी का मसल दो दबा दो फिर बोलो की ग़लती हो गई, अपना मज़ा कर लो दूसरे चाहे कैसे भी रहे",
कह कर मा ने मेरे लंड को कस के दबाया, उसके कोमल हाथो का स्पार्स पा के मेरा लंड तो लोहा हो गया था, और गरम भी काफ़ी हो गया था.
"हाई मा, छ्होरो, क्या कर रही हो"
मा उसी तरह से मुस्कुराती हुई बोली "क्यों प्यारे तूने मेरा दबाया तब तो मैने नही बोला की छ्होरो, अब क्यों बोल रहा है तू,"
मैने कहा "ही, मा तू दबाएगी तो सच में मेरा पानी निकाल जाएगा,
"क्यों पानी निकालने के लिए ही तो तू दबा रहा था ना मेरी छातिया, मैं अपने हाथ से निकाल देती हू, तेरे गन्ने से तेरा रूस, चल, ज़रा अपना गन्ना तो दिखा,"
" मा छ्होरो, मुझे शरम आती है"
"अक्चा, अभी तो बरा शरम आ रही है, और हर रोज जो लूँगी और पाजामा हटा हटा के, सफाई जब करता है तब, तब क्या मुझे दिखाई नही देता क्या, अभी बरी आक्टिंग कर रहा है,"
" नही मा, तब की बात तो और है, फिर मुझे थोरे ही पाता होता था की तुम देख रही हो",
"ओह ओह मेरे भोले राजा, बरा भोला बन रहा, चल दिखा ना, देखु कितना बरा और मोटा है तेरा गन्ना"
मैं कुच्छ बोल नही पा रहा था, मेरे मुँह से साबद नही निकाल पा रहे थे, और लग रहा था जैसे, मेरा पानी अब निकला की तब निकला. इस बीच मा ने मेरे पाजामे का नारा खोल दिया और अंदर हाथ डाल के मेरे लंड को सीधा पकर लिए, मेरा लंड जो की केवल उसके च्छुने के कारण से फुफ्करने लगा था अब उसके पकरने पर अपनी पूरी औकात पर आ गया और किसी मोटे लोहे के रोड की तरह एक दम टन कर उपर की तरफ मुँह उठाए खरा था. मा ने मेरे लंड को अपने हाथो में
पकरने पूर कोशिश कर रही थी पर, मेरे लंड की मोटाई के कारण से वो उसे अपने मुट्ठी में अच्छी तरह से क़ैद नही कर पा रही थी. उसने मेरे पाजामे को वही खुले में पेर के नीचे मेरे लंड पर से हटा दिया,
" मा, छ्होरो, कोई देख लेगा, ऐसे कपरा मत हटाओ"
मगर मा शायद पूरे जोश में आ चुकी थी,
"चल कोई नही देखता, फिर सामने बैठी हू, किसी को नज़र नही आएगा, देखु तो सही मेरे बेटे का गन्ना आख़िर है कितना बरा"?
और मेरा लंड देखता ही, असचर्या से उसका मुँह खुला का खुला रह गया, एक डम से चौक्ति हुई बोली, "है दैया ये क्या इतना मोटा, और इतना लूंबा, ये कैसे हो गया रे, तेरे बाप का तो बीतते भर का भी नही है, और यहा तू बेलन के जैसा ले के घूम रहा"
"ओह, मा, मेरी इसमे क्या ग़लती है, ये तो सुरू में पहले छ्होटा साथा पर अब अचानक इतना बरा हो गया है तो मैं क्या करू"


"ग़लती तो तेरी ही है जो तूने , इतना बरा जुगार होते हुए भी अभी तक मुझे पाता नही चलने दिया, वैसे जब मैने देखा था नहाते वाक़ूत तब तो इतना बरा नही दिख रहा था रे"
" मा, वो वो " मैं हकलाते हुए बोला "वो इसलिए कोयोंकि उस समय ये उतना खरा नही रहा होगा, अभी ये पूरा खरा हो गया है"
"ओह ओह तो अभी क्यों खरा कर लिया इतना बरा, कैसे खरा हो गया अभी तेरा?"
अब मैं क्या बोलता की कैसे खरा हो गया. ये तो बोल नही सकता था की मा तेरे कारण खरा हो गया है मेरा. मैने सकपकते हुए कहा "अर्रे वो ऐसे ही खरा हो गया है तुम छ्होरो अभी ठीक हो जाएगा"
"ऐसे कैसे खरा हो जाता है तेरा" मा ने पुचछा और मेरी आँखो में देख कर अपने रसीले होंठो का एक कोना दबा के मुस्कने लगी .
"आरे तुमने पकर रखा है ना इसलिए खरा हो गया है मेरा क्या करू मैं, ही छ्होर दो नो" मैने किसी भी तरह से मा का हाथ अपने लंड पर से हटा देना चाहता था. मुझे ऐसा लग रहा था की मा के कोमल हाथो का स्पर्श पा के कही मेरा पानी निकाल ना जाए. फिर मा ने केवल पाकारा तो हुआ नही था. वो धीरे धीरे मेरे लंड को सहला
भी और बार बार अपने अंगूठे से मेरे चिकने सुपरे के च्छू भी रही थी.
" अच्छा अब सारा दोष मेरा हो गया, और खुद जो इतनी देर से मेरी छातिया पकर के मसल रहा था और दबा रहा था उसका कुच्छ नही"
" ग़लती हो गई"
"चल मान लिया ग़लती हो गई, पर सज़ा तो इसकी तुझे देनी परेगी, मेरा तूने मसला है, मैं भी तेरा मसल देती हू," कह कर मा अपने हाथो को थोरा तेज चलाने लगी और मेरे लंड का मूठ मरते हुए मेरे लंड के मंडी को अंगूठे से थोरी तेज़ी के साथ घिसने लगी. मेरी हालत एकद्ूम खराब हो रही थी. गुदगुदाहट और सनसनी के मारे मेरे मुँह से कोई आवाज़ नही निकाल पा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे की मेरा पानी अब निकला की तब निकला. पर मा को मैं रोक भी नही पा
रहा था.
मैने सीस्यते हुए कहा "ओह मा, ही निकाल जाएगा, मेरा निकाल जाएगा"
इस पर मा ने और ज़ोर से हाथ चलते हुए अपनी नज़र उपर करके मेरी तरफ देखते हुए बोली "क्या निकाल जाएगा".
"ओह ओह, छ्होरो ना तुम जानती हो क्या निकाल जाएगा क्यों परेशान कर रही हो"
"मैं कहा परेशान कर रही हू, तू खुद परेशान हो रहा है"
"क्यों, मैं क्यों भला खुद को परेशान करूँगा, तुम तो खुद ही ज़बरदस्ती, पाता नही क्यों मेरा मसले जा रही हो"
"अच्छा, ज़रा ये तो बता शुरुआत किसने की थी मसल्ने की" कह कर मा मुस्कुराने लगी.
मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया था मैं भला क्या जवाब देता कुच्छ समझ में ही नही आ रहा था की क्या करू क्या ना करू, उपर से मज़ा इतना आ रहा था की जान निकली जा रही थी. तभी वो हल्का सा आगे की ओररे सर्की और झुकी, आगे झुकते ही उनका आँचल उनके ब्लाउज पर से सरक गया. पर उन्होने कोई प्रयास ऩही किया उसको ठीक करने का. अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी. मेरी आँखो के सामने उनकी नारियल के जैसी सख़्त चुचिया जिनको सपने में देख कर मैने ना जाने कितनी बार अपना माल गिराया था और जिनको दूर से देख कर ही तारपता रहता था नुमाया थी. भले ही चूचुइयाँ अभी भी ब्लाउज में ही क़ैद थी परंतु उनके भारीपन और सख्ती का अंदाज उनके उपर से ही लगाया जा सकता था. ब्लाउस के उपरी भाग से उनकी चुचियों के बीच की खाई का उपरी गोरा गोरा हिस्सा नज़र आ रहा था. हलकी चुचियों को बहुत बरा तो ऩही कहा जा सकता पर, उतनी बरी तो थी ही जितनी एक स्वस्थ सरीर की मालकिन का हो सकता हाई. मेरा
मतलब हाई की इतनी बरी जितनी की आप के हाथो में ना आए पर इतनी बरी भी ऩही की आप को दो दो हाथो से पाकरना परे और फिर भी आपके हाथ ना आए. एक डम किसी भाले की तरह नुकीली लग रही थी और सामने की ओररे निकली हुई थी. मेरी आँखे तो हटाए ऩही हट रही थी. तभी मा ने अपने हाथो को मेरे लंड पर थोरा ज़ोर से दबाते हुए पुचछा "बोल ना दबाउ क्या और"
" मा छ्होरो ना"
उन्होने ने ज़ोर से मेरे लंड को मुट्ही में भर लिया,
" मा छ्होरो बहुत गुदगुदी होती हाई"
"तो होने दे ना, तू खाली बोल दबौउ या ऩही"

" दबाओ, मा मस्लो"
"अब आया ना रास्ते पर"
" मा तुम्हारे हाथो में तो जादू हाई"
"जादू हाथो में है या फिर इसमे है (अपने ब्लाउज की तरफ इशारा कर के पुछा)
" मा तुम तो बस"
"शरमाता क्यों हाई, बोल ना क्या अक्चा लग रहा हाई"
"माँ मैं क्या बोलू"
"क्यों क्या अक्चा लग रहा है ?", "अर्रे अब बोल भी दे शरमाता क्यों हाई"
"माँ अच्छा लग रहा है "
"तो फिर शर्मा क्यों रहा था बोलने में, फिर मा ने बरे आराम से मेरे पूरे लंड को मुति के अंदर क़ैद कर हल्के हल्के अपना हाथ चलना शुरू कर दिया.
"तू तो पूरा जवान हो गया है रे"
"हाँ मा"
" पूरा सांड की तरह से जवान हो गया है तू तो, अब तो बर्दाश्त भी ऩही होता होगा, कैसे करता है"
"क्या मा"
"वही, बर्दाश्त, और क्या, तुझे तो अब छेद चाहिए, समझा?
छेद मतलब "? मा, ऩही समझा"
"क्या उल्लू लरका है रे तू, छेद मतलब ऩही सकझता"
मैने नाटक करते हुए कहा "ऩही मा ऩही समझता".
इस पर मा हल्के हल्के मुस्कुराने लगी और बोली "चल समझ जाएगा, फिर उसने अपने हाथो को तेज़ी से मेरे लंड पर चलाने लगी. मारे गुदगुदी और सनसनी के मेरा तो बुरा हाल हो रखा था. समझ में ऩही आ रहा था क्या करू, दिल कर रहा था की हाथ को आगे बढ़ा कर मा के दोनो चुचियों को कस के पकर लू और खूब ज़ोर ज़ोर से दबौउ. लेकिन डर रहा था की कही बुरा ना मान जाए. इसी चक्कर में मैने कराहते हुए सहारा लेने के लिए सामने बैठी मा के कंधे पर अपने दोनो हाथ रख दिए. वो बोली तो कुच्छ ऩही पर अपनी नज़रे उपर कर के मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली "क्यों मज़ा आ रहा है की ऩही""
हाँ , मा मज़े की तो बस पूछो मत बहुत मज़ा आ रहा है" मैं बोला. इस पर मा ने अपने हाथ और तेज़ी से चलना सुरू कर दिया और बोली "साले हरामी कही का, मैं जब नहाती हू तब घूर घूर के मुझे देखता रहता है, मैं जब सो रही थी तो मेरे चुचे दबा रहा था और, और अभी मज़े से मूठ मरवा रहा है, कामीने तेरे को शरम ऩही
आती" मेरा तो होश ही उर गया ये मा क्या बोल रही थी. पर मैने देखा की उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह मेरे लंड को सहलाए जा रहा था. तभी मा मेरे चेहरे के उरे हुए रंग को देख कर हंसने लगी और हँसते हुए मेरे गाल पर एक थप्पर लगा दिया. मैने कभी भी इस से पहले मा को ना तो ऐसे बोलते देखा था ना ही इस तरह से व्यवहार करते हुए नही देखा था इसलिए मुझे बरा आश्चर्य हो रहा था. पर उनके हसते हुए थप्पर लगाने पर तो मुझे और भी ज़यादा आशचर्य हुआ की आख़िर ये चाहती क्या है. और मैने बोला की "माफ़ कर दो मा अगर कोई ग़लती हो गई हो तो" . इस पर मा ने मेरे गालो को हल्के सहलाते हुए कहा की "ग़लती तो तू कर बैठा है बेटे अब, केवल ग़लती की सज़ा मिलेगी तुझे,"
मैने कहा "क्या ग़लती हो गई मेरे से मा"
सबसे बरी ग़लती तो ये है की तू खाली घूर घूर के देखता है बस, करता धर्ता तो कुच्छ है ऩही, खाली घूर घूर के कितने दिन देखता रहेगा" .
"क्या करू मा, मेरी तो कुच्छ समझ में ऩही आ रहा"
"साले बेवकूफ़ की औलाद, अर्रे करने के लिए इतना कुच्छ है और तुझे समझ में ही ऩही आ रहा है",
"क्या मा बताओ ना, "
"देख अभी जैसे की तेरा मन कर रहा है की तू मेरे अनारो से खेले,
उन्हे दबाए, मगर तू ऩही वो काम ना कर के केवल मुझे घूरे जा रहा है, बोल तेरा मन कर रहा है की ऩही, बोल ना"
"हाँ , मा मन तो मेरे बहुत कर रहा है,
"तो फिर दबा ना, मैं जैसे तेरे औज़ार से खेल रही हू वैसे ही तू
मेरे समान से खेल, दबा बेटा दबा, बस फिर क्या था मेरी तो बांछे खिल गई मैने दोनो हथेलियो में दोनो चुचो को थाम लिया और हल्के हल्के उन्हे दबाने लगा., मा बोली "शाबाश , ऐसे ही दबाने का. जितना दबाने का मन उतना दबा ले, कर ले मज़े".
मैं फिर पूरे जोश के साथ हल्के हाथो से उसके चुचियों को दबाने लगा. ऐसी मस्त मस्त चुचिया पहली बार किसी ऐसे के हाथ लग जाए जिसने पहले किसी
चुचि को दबाना तो दूर छुआ तक ना हो तो बंदा तो जन्नत में पहुच ही जाएगा ना. मेरा भी वही हाल था, मैने हल्के हाथो से संभाल संभाल के चुचियों को दबाए जा रहा था. उधर मा के हाथ तेज़ी से मेरे लंड पर चल रहे थे, तभी मा जो अब तक काफ़ी उत्तेजित हो चुकी थी ने मेरे चेहरे की ओररे देखते हुए कहा "क्यों मज़ा आ रहा है ना, ज़ोर से दबा मेरे चुचयों को बेटा तभी पूरा मज़ा मिलेगा, मसलता जा, देख अभी तेरा माल मैं कैसे निकलती हू".
मैने ज़ोर से चुचियों को दबाना सुरू कर दिया था, मेरा मन कर रहा था की मैं मा के ब्लाउज खोल के चुचियों को नंगा करके उनको देखते हुए दबौउ, इसीलये मैने मा से पुचछा " मा तेरा ब्लाउज खोल दू?"
इस पर वो मुस्कुराते हुए बोली "ऩही अभी रहने दे, मैं जानती हू की तेरा बहुत मन कर रहा होगा की तू मेरी नंगी चुचियों को देखे मगर, अभी रहने दे"
मैं बोला ठीक है मा, पर मुझे लग रहा हाई की मेरे औज़ार से माल निकालने वाला है ".
इस पर मा बोली "कोई बात ऩही बेटा निकालने दे, तुझे मज़ा आ रहा है ना?"
"हा मा मज़ा तो बहुत आ रहा है"

"अभी क्या मज़ा आया है बेटे अभी तो और आएगा, अभी तेरा माल निकाल ले फिर देख मैं तुझे कैसे जन्नत की सैर कराती हू" कह कर मा ने अपना हाथ
और ज़यादा तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया. मेरे पानी अब बस निकालने वाला ही था, मैने भी अपना हाथ अब तेज़ी के साथ मा के अनारो पर चलाना सुरू कर दिया था. मेरा दिल कर रहा था उन प्यारे प्यारे चुचियों को अपने मुँह में भर के चुसू, लेकिन वो अभी संभव ऩही था. मुझे केवल चुचियों को दबा दबा के ही संतोष
करना था. ऐसा लग रहा था जैसे की मैं अभी सातवे आसमान पर उड़ रहा था, मैं भी खूब ज़ोर ज़ोर सीस्यते हुए बोलने लगा "ओह मा, हा मा और ज़ोर से मस्लो, और ज़ोर से मूठ मारो, निकाल दो मेरा सारा पानी"
पर तभी मुझे ऐसा लगा जैसे की मा ने लंड पर अपनी पकर ढीली कर दी है. लंड को छोड़ कर मेरे आंडो को अपने हाथ से पकड़ के सहलाते हुए मा बोली "अब तुझे एक नया मज़ा चखती हू, ठहर जा" और फिर धीरे धीरे मेरे लंड पर झुकने लगी, लंड को एक हाथ से पाकरे हुए वो पूरी तरह से मेरे लंड पर झुक गई और अपने होठों को खोल कर मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया. मेरे मुँह से एक आह निकल गई, मुझे विश्वास ऩही हो रहा था की वो ये क्या कर रही है.
मैं बोला "ओह मा ये क्या कर रही हो, है छ्होर ना बहुत गुदगुदी हो रही है"
मगर वो बोली "तो फिर मज़े ले इस गुदगुदी के, करने दे तुझे अच्छा लगेगा".
" मा क्या इसको मुँह में भी लिया जाता,"
"हा मुँह में भी लिया जाता है और दूसरी जगहो पर भी, अभी तू मुँह में डालने का मज़ा लूट" कह कर तेज़ी के साथ मेरे लंड को चूसने लगी, मेरी तो कुच्छ समझ में ऩही आ रहा था, गुदगुदी और सनसनी के कारण मैं मज़े के सातवे आसमान पर झूल रहा था. मा ने पहले मेरे लंड के सुपारे को अपने मुँह में भरा और धीरे धीरे चूसने लगी, और मेरी र बरी सेक्सी अंदाज़ में अपने नज़रो को उठा के बोली, "कैसा लाल लाल सुपारा है रे तेरा, एकदम पाहरी आलू के जैसे, लगता है अभी फट जाएगा, इतना लाल लाल सुपरा कुंवारे लड़कों का ही होता है" फिर वो और कस कस के मेरे सुपारे को अपने होंठो में भर भर के चूसने लगी. नदी के किनारे, पेड़ की छावं में मुझे ऐसा मज़ा मिल रहा था जिसकी मैने आज तक कल्पना तक ऩही की थी. मा अब मेरे आधे से अधिक लौरे को अपने मुँह में भर चुकी थी और अपने होंठो को कस के मेरे लंड के चारो तरफ से दब्ए हुए धीरे धीरे उपर सुपारे तक लाती थी और फिर उसी तरह से सरकते हुए नीचे की तरफ ले जाती थी. उसकी शायद इस बात का अच्छी तरह से अहसास था की ये मेरा किसी औरत के साथ पहला संबंध है और मैने आज तक किसी औरत हाथो का स्पर्श अपने लंड पर ऩही महसूस किया है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वो मेरे लंड को बीच बीच में ढीला भी छ्होर देती थी और मेरे आंडो को दबाने लगती थी. वो इस बात का पूरा ध्यान रखे हुए थी की मैं जल्दी ना झारू. मुझे भी गजब का मज़ा आ रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे की मेरा लंड फट जाएगा मगर. मुझसे अब रहा ऩही जा रहा था मैने मा से कहा " मा, अब निकाल जाएगा मा, मेरा माल अब लगता है ऩही रुकेगा".
उसने मेरी बातो की ओर कोई ध्यान ऩही दिया और अपनी चूसाई जारी रखी.
मैने कहा "मा तेरे मुँह में ही निकल जाएगा, जल्दी से अपना मुँह हटा लो"
इस पर मा ने अपना मुँह थोरी देर के लिए हटाते हुए कहा की "कोई बात ऩही मेरे मुँह में ही निकाल मैं देखना चाहती हू की कुंवारे लरके के पानी का स्वाद कैसा होता है" और फिर अपने मुँह में मेरे लंड को कस के जकरते हुए उसने अब अपना पूरा ध्यान केवल अब मेरे सुपाडे पर लगा दिया और मेरे सुपारे को कस कस के चूसने लगी, उसकी जीभ मेरे सुपारे के कटाव पर बार बार फिर रही थी. मैं सीस्यते हुए बोलने लगा "ओह मा पी जाओ तो फिर, चख लो मेरे लंड का सारा पानी, ले लो अपने मुँह में, ओह ले लो, कितना मज़ा आ रहा है, ही मुझे ऩही पाता था की इतना मज़ा आता है, ही निकाल गया, निकाल गया, मा-निकला .
तभी मेरे लंड का फ़ौवारा छुट पड़ा और. तेज़ी के साथ भालभाला कर मेरे लंड से पानी गिरने लगा. मेरे लंड का सारा सारा पानी सीधे मा के मुँह में गिरता जा रहा था. और वो मज़े से मेरे लंड को चूसे जा रही थी. कुछ ही देर तक लगातार वो मेरे लंड को चुस्ती रही, मेरा लॉरा अब पूरी तरह से उसके थूक से भीग कर गीला हो गया था और धीरे धीरे सिकुर रहा था. पर उसने अब भी मेरे लंड को अपने मुँह से ऩही निकाला था और धीरे धीरे मेरे सिकुरे हुए लंड को अपने मुँह में किसी चॉक्लेट की तरह घुमा रही थी. कुछ देर तक ऐसा ही करने के बाद जब मेरी साँसे भी कुच्छ सांत हो गई तब मा ने अपना चेहरा मेरे लंड पर से उठा लिया और अपने मुँह में जमा मेरे वीर्या को अपना मुँह खोल कर दिखाया और हल्के से हंस दी. फिर उसने मेरा सारे पानी गटक लिया और अपने सारी पल्लू से अपने होंठो को पोछती हुई बोली, " मज़ा आ गया, सच में कुंवारे लंड का पानी बरा मीठा होता है, मुझे ऩही पाता था की तेरा पानी इतना मजेदार होगा" फिर मेरे से पुछा "मज़ा आया की ऩही", मैं क्या जवाब देता, जोश ठंडा हो जाने के बाद मैने अपने सिर को नीचे झूहका लिया था, पर गुदगुदी और सनसनी तो अब भी कायम थी, तभी मा ने मेरे लटके हुए लौरे को अपने हाथो में पकरा और धीरे से अपने सारी के पल्लू से पोचहति हुई पूछी "बोल ना, मज़ा आया की ऩही," मैने सहरमते हुए जवाब दिया "हाँ मा बहुत मज़ा आया, इतना मज़ा कभी ऩही आया था", तब मा ने पुचछा "क्यों? अपने हाथ से नही करता था क्या",
"करता हूँ मा, पर उतना मज़ा ऩही आता था जितना आज आया है"
"औरत के हाथ से करवाने पर तो ज़यादा मज़ा आएगा ही, पर इस बात का ध्यान राखियो की किसी को पाता ना चले "
"हा मा किसी को पाता ऩही चलेगा"
तब मा उठ कर खडी हो गई, अपने सारी के पल्लू को और मेरे द्वारा मसले गये ब्लाउज को ठीक किया और मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए अपने बुर के सामने अपने साड़ी को हल्के से दबाया और साड़ी को चूत के उपर ऐसे रगडा जैसे की पानी पोछ रही हो. मैं उसकी इस क्रिया को बरे गौर से देख रहा था. मेरे ध्यान से देखने पर वो हसते हुए बोली "मैं ज़रा पेशाब कर के आती हू, तुझे भी अगर करना है तो चल अब तो कोई शरम ऩही है" मैं हल्के से शरमाते हुए मुस्कुरा दिया तो बोली "क्यों अब भी शर्मा रहा है क्या". मैने इस पर कुच्छ ऩही कहा और चुप चाप उठ कर खरा हो गया. वो आगे चल दी और मैं उसके पिच्चे-पिच्चे
चल दिया. जब हम झारियों के पास पहुच गये तो मा ने एक बार पीछे मुड कर मेरी ओर देखा और मुस्कुरई फिर झारियों के पीछे पहुच कर बिना कुच्छ बोले अपने साड़ी उठा के पेशाब करने बैठ गई. उसकी दोनो गोरी गोरी जंघे उपर तक नंगी हो चुकी थी और उसने शायद अपने साड़ी को जान बुझ कर पीछे से उपर उठा दिया था जिस के कारण उसके दोनो चूतर भी नुमाया हो रहे थे. ये सीन देख कर मेरा लंड फिर से फुफ्करने लगा. उसका गोरे गोरे चूतर बरे कमाल के लग रहे थे. मा ने अपने चूटरो को थोरा सा उचकाया हुआ था जिस के कारण उसके गांद की खाई भी धीख रही थी. हल्के भूरे रंग की गांद की खाई देख कर दिल तो यही कर रहा था की पास जा उस गांद की खाई में धीरे धीरे उंगली चलौ और गांद की भूरे रंग की च्छेद को अपनी उंगली से च्चेरू और देखु की कैसे पाक-पकती है. तभी मा पेशाब कर के उठ खरी हुई और मेरी तरफ घूम गई. उसेन अभी तक सारी को अपने जेंघो तक उठा रखा था. मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए उसने अपने सारी को छ्होर दिया और नीचे गिरने दिया, फिर एक हाथ को अपनी चूत पर सारी के उपर से ले जा के रगड़ने लगी जैसे की पेशाब पोच्च रही हो और बोली "चल तू भी पेशाब कर ले
खरा खरा मुँह क्या तक रहा है". मैं जो की अभी तक इस शानदार नज़ारे में खोया हुआ था थोरा सा चौंक गया पर फिर और हकलाते हुए बोला "हा हा अभी करता हू,,,,,, मैने सोचा पहले तुम कर लो इसलिए रुका था". फिर मैने अपने पाजामा के नारे को खोला और सीधा खरे खरे ही मूतने की कोशिश करने लगा. मेरा लंड तो फिर से खरा हो चुक्का था और खरे लंड से पेशाब ही ऩही निकाल रहा था. मैने अपनी गांद तक का ज़ोर लगा दिया पेशाब करने के चक्कर में. मा वही बगल में खरी हो कर मुझे देखे जा रही थी. मेरे खरे लंड को देख कर वो हसते हुए बोली "चल जल्दी से कर ले पेशाब, देर हो रही है घर भी जाना है" मैं क्या बोलता पेशाब तो निकाल ऩही रहा था. तभी मा ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को अपने हाथो में पकर लिया और बोली "फिर से खरा कर लिया, अब पेशाब कैसे उतरेगा' ? कह कर लंड को हल्के हल्के सहलाने लगी, अब तो लंड और टाइट हो गया पर मेरे ज़ोर लगाने पर पेशाब की एक आध बूंदे नीचे गिर गई, मैने मा से कहा "अर्रे तुम छ्होरो ना इसको, तुमहरे पकरने से तो ये और खरा हो जाएगा, छ्होरो"
और मा का हाथ अपने लंड पर से झतकने की कोशिश करने लगा, इस पर मा ने हसते हुए कहा "मैं तो छ्होर देती हू पर पहले ये तो बता की खरा क्यों किया था, अभी दो मिनिट पहले ही तो तेरा पानी निकाला था मैने, और तूने फिर से खरा कर लिया, कमाल का लरका है तू तो". मैं खुच्छ ऩही बोला, अब लंड थोरा ढीला पर गया था और मैने पेशाब कर लिया. मूतने के बाद जल्दी से पाजामा के नारे को बाँध कर मैं मा के साथ झारियों के पीछे से निकाल आया, मा के चेहरे पर अब भी मंद मंद मुस्कान आ रही थी. मैं जल्दी जल्दी चलते हुए आगे बढ़ा और कापरे के गत्थर को उठा कर अपने माथे पर रख लिया, मा ने भी एक गथर को उठा लिया और अब हम दोनो मा बेटे जल्दी जल्दी गाँव के पगडंडी वाले रास्ते पर चलने लगे.
शाम होते होते तक हम अपने घर पहुच चुके थे. कपरो के गथर को इस्त्री करने वाले कमरे में रखने के बाद हुँने हाथ मुँह धोया और फिर मा ने कहा की बेटा चल कुच्छ खा पी ले. भूख तो वैसे मुझे खुच खास लगी ऩही थी (दिमाग़ में जब सेक्स का भूत सॉवॅर हो तो भूख तो वैसे भी मार जाती हाई) पर फिर भी मैने अपना सिर सहमति में हिला दिया. मा ने अब तक अपने कपरो को बदल लिया था, मैने भी अपने पाजामा को खोल कर उसकी जगह पर लूँगी पहन ली क्यों की गर्मी के दीनो में लूँगी ज़यादा आराम दायक होती हाई. मा रसोई घर में चली गई.
रात के 9:30 ही बजे थे. पर गाँव में तो ऐसे भी लोग जल्दी ही सो जाया करते है. हम दोनो मा बेटे आ के बिच्छवान पर लेट गये. बिच्छवान पर मेरे पास ही मा भी आके लेट गई थी. मा के इतने पास लेटने भर से मेरे सरीर में एक गुदगुदी सी दौर गई. उसके बदन से उठने वाली खुसबु मेरी सांसो में भरने लगी और मैं बेकाबू होने लगा था. मेरा लंड धीरे धीरे अपना सिर उठाने लगा था. तभी मा मेरी ओररे करवट कर के घूमी और पुचछा "बहुत तक गये हो ना"?
"हा, मा , जिस दिन नदी पर जाना होता है, उस दिन तो थकावट ज़यादा हो ही जाती है"
"हा, बरी थकावट लग रही है, जैसे पूरा बदन टूट रहा हो"
"मैं दबा दू, थोरी थकान दूर हो जाएगी"
"ऩही रे, रहने दे तू, तू भी तो थक गया होगा"
"ऩही मा उतना तो ऩही थका की तेरी सेवा ना कर सकु"
मा के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और वो हस्ते हुए बोली....."दिन में इतना कुच्छ हुआ था, उससे तो तेरी थकान और बढ़ गई होगी"
"ही, दिन में थकान बढ़ने वाला तो कुच्छ ऩही हुआ था". इस पर मा थोरा सा और मेरे पास सरक कर आई, मा के सरकने पर मैं भी थोरा सा उसकी र सरका हम दोनो की साँसे अब आपस में टकराने लगी थी. मा ने अपने हाथो को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे धीरे अपने हाथो से मेरी कमर और जाँघो को सहलाने लगी. मा की इस हरकत पर मेरे दिल की धरकन बढ़ गई और लंड अब फुफ्करने लगा था. मा ने हल्के से मेरी जाँघो को दबाया. मैने हिम्मत कर के हल्के से अपने कपते हुए हाथो को बढ़ा के मा की कमर पर रख दिया. मा कुछ ऩही बोली बस हल्का सा मुस्कुरा भर दी. मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं अपने हाथो से मा के नंगे कमर को सहलाने लगा. मा ने केवल पेटिकोट और ब्लाउस पहन रखा था. उसके ब्लाउस के उपर के दो बटन खुले हुए थे. इतने पास से उसकी चुचियों की गहरी घाटी नज़र आ रही थी और मन कर रहा था जल्दी से जल्दी उन चुचियों को पकर लू. पर किसी तरह से अपने आप को रोक रखा था. मा ने जब मुझे चुचियों को घूरते हुए देखा तो मुस्कुराते हुए बोली, "क्या इरादा है तेरा, शाम से ही घूरे जा रहा है, खा जाएगा क्या"
"ही, मा तुम भी क्या बात कर रही हो, मैं कहा घूर रहा था"
"चल झूते, मुझे क्या पाता ऩही चलता, रात में भी वही करेगा क्या"
"क्या मा"
"वही जब मैं सो जाउंगी तो अपना भी मसलेगा और मेरी चुचियों को भी दबाएगा"
"हाँ , मा"
"तुझे देख के तो यही लग रहा है की तू फिर से वही हरकत करने वाला है"
"ऩही, मा" मेरे हाथ अब मा की जाँघो को सहला रहे थे.
"वैसे दिन में मज़ा आया था" पुच्छ कर मा ने हल्के से अपने हाथो को मेरे लूँगी के उपर लंड पर रख दिया. मैने कहा "हाँ मा, बहुत अच्छा लगा था"
"फिर करने का मन कर रहा है क्या"
"हाँ , मा"
इस पर मा ने अपने हाथो का दवाब ज़रा सा मेरे लंड पर बढ़ा दिया और हल्के हल्के दबाने लगी. मा के हाथो का स्पर्श पा के मेरी तो हालत खराब होने लगी थी. ऐसा लग रहा था की अभी के अभी पानी निकल जाएगा. तभी मा बोली, "जो काम तू मेरे सोने के बाद करने वाला है वो काम अभी कर ले, चोरी चोरी करने से तो अच्छा है की तू मेरे सामने ही कर ले" मैं कुच्छ ऩही बोला और अपने काँपते हाथो को हल्के से मा की चुचियों पर रख दिया. मा ने अपने हाथो से मेरे हाथो को पकर कर अपनी चुचियों पर कस के दबाया और मेरी लूँगी को आगे से उठा दिया और अब मेरे लंड को सीधे अपने हाथो से पकर लिया. मैने भी अपने हाथो का दवाब उसकी चुचियों पर बढ़ा दिया. मेरे अंदर की आग एकदम भरक उठी थी और अब तो ऐसा लग रहा था की जैसे इन चुचियों को मुँह में ले कर चूस लू. मैने हल्के से अपने गर्दन को और आगे की र बढ़ाया और अपने होतो को ठीक चुचियों के पास ले गया. मा सयद मेरे इरादे को समझ गई थी. उसने मेरे सिर के पिच्चे हाथ डाला और अपने चुचियों को मेरे चेहरे से सता दिया. हम दोनो अब एक दूसरे की तेज़ चलती हुई सांसो को महसूस कर रहे थे. मैने अपने होतो से ब्लाउस के उपर से ही मा की चुचियों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा मेरा दूसरा हाथ कभी उसकी चुचियों को दबा रहा था कभी उसके मोटे मोटे ****अरो को. मा ने भी अपना हाथ तेज़ी के साथ चलना शुरू कर दिया था और मेरे मोटे लंड को अपने हाथ से मुठिया रही थी. मेरा मज़ा बढ़ता जा रहा था. तभी मैने सोचा ऐसे करते करते तो मा फिर मेरा निकल देगी और सयद फिर कुच्छ देखने भी ऩही दे जबकि मैं आज तो मा को पूरा नंगा करके जी भर के उसके बदन को देखना चाहता था. इसलिए मैने मा के हाथो को पकर लिया और कहा " मा रूको"
"क्यों मज़ा ऩही आ रहा है क्या, जो रोक रहा है"
"मा, मज़ा तो बहुत आ रहा है मगर"
"फिर क्या हुआ,"
"फिर मा, मैं कुच्छ और करना चाहता हू, ये तो दिन के जैसे ही हो जाएगा"
इस पर मा मुस्कुराते हुए पुछि " तो तू और क्या करना चाहता है, तेरा पानी तो ऐसे ही निकलेगा ना और कैसे निकलेगा"
"ऩही मा, पानी ऩही निकलना मुझे"
"तो फिर क्या करना है"
"मा, देखना है"
"क्या देखना है रे"
"मा, ये देखना है" कह कर मैने एक हाथ सीधा मा के बुर पर रख दिया.
"बदमाश, ये कैसी तमन्ना पल ली तूने"
" मा बस एक बार दिखा दो ना"
"इधर आ मेरे पैरो के बीच में अभी तुझे दिखती हू. पर एक बात जान ले तू पहली बार देख रहा है देखते ही तेरा पानी निकल जाएगा समझा" फिर मा ने अपने हाथो से पेटिकोट के निचले भाग को पाकारा और धीरे धीरे उपर उठाने लगी. मेरी हिम्मत तो बढ़ ही चुकी थी मैने धीरे से मा से कहा "ओह मा ऐसे ऩही" "तो फिर कैसे रे, कैसे देखेगा"
"ही मा, पूरा खोल के दिखाओ ना"
"पूरा खोल के से तेरा क्या मतलब है"
" पूरा कपरा खोल के, मेरी बरी तम्माना है की मैं तुम्हारे पूरे बदन को नंगा देखु, बस एक बार"
मा ने मेरे लंड को फिर से अपने हाथो में पकर लिया और मुठियाने लगी. इस पर मैं बोला "ओह छ्होर दो मा, ज़यादा करोगी तो अभी निकल जाएगा"
"कोई बात ऩही अभी निकल ले अगर पूरा खोल के दिखा दूँगी तो फिर तो तेरा देखते ही निकल जाएगा, पूरा खोल के देखना है ना अभी", इतना सुनते ही मेरा दिल तो बल्लियों उच्छलने लगा.
"है मा, सच में दिखावगी ना"
"हा दिखौँगी मेरे राजा बेटा, ज़रूर दिखौँगी, अब तो तू पूरा जवान हो गया है और, काम करने लायक भी हो गया है, अब तो तुझे ही दिखना है सब कुच्छ और तेरे से अपना सारा काम करवाना है मुझे. मा और तेज़ी के साथ मेरे लंड को मुठिया रही थी और बार बार मेरे लंड के सुपरे को अपने अंगूठे से दबा भी रही थी. मा बोली "अभी जल्दी से तेरा निकल देती हू फिर देख तुझे कितना मज़ा आएगा, अभी तो तेरी ये हालत है की देखते ही झार जाएगा, एक पानी निकल दे फिर देख तुझे कितना मज़ा आता है"
"ठीक है मा निकल दो एक पानी, मैं तुम्हारा दबौउ?"
" अब आया ना लाइन पर. पूछता क्या है, दबा ना, दबा मेरी चुचियों को इस से तेरा पानी जल्दी निकलेगा, है क्या भयनकार लौड़ा है, पाता ऩही इस उमर में ये हाल है, जब इस छोकरे के लंड का, तो पूरा जवान होगा तो क्या होगा"
मैने अपने दोनो हथेलियो में मा की चुचिया भर ली और उन्हे खूब कस कस के दबाने लगा. ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे की मैं पागल हो जौंगा. दोनो चुचिया किसी अनार की तरह से सख़्त और गुदाज़ थी. उसके मोटे मोटे निपल भी ब्लाउस के उपर से पकर में आ रहे थे. मैं दोनो निपल के साथ साथ पूरी चुचि को ब्लाउस के उपर से पकर कर दबाए जा रहा था. मा के मुँह से अब सिसकारिया निकलने लगी थी और वो मेरा उत्साह बढ़ते जा रही थी.
"है बेटा शाबाश ऐसे ही दबा मेरी चुचियों को, है क्या लॉरा है, पाता ऩही घोरे का है या सांड का, ठहर जा अभी इसे चूस के तेरा पानी निकलती हू" कह कर वो नीचे की र झुक गई जल्दी से मेरा लंड अपने होंठो के बीच क़ैद कर लिया और सुपरे को होंठो के बीच दबा के खूब कस कस के चूसने लगी जैसे की पीपे लगा के कोई कोका-कोला पीटा है. मैं उसकी चुचियो को अब और ज़यादा ज़ोर से दबा रहा था, मेरी भी सिसकारिया निकलने लगी थी, मेरा पानी अब च्छुतने वाला ही था.
"है, रे मेरी मा निकला रे निकला मेरा निकल गया ओह मा सारा सारा का सारा पानी तेरे मुँह में ही निकल गया रे". मा का हाथ अब और टर गति से चलने लगा ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे पानी को गाता-गत पीते जा रही है. मेरे लंड के सुपरे से निकले एक-एक बूँद पानी चूस जाने के बाद मा ने अपने होंठो मेरे को मेरे लंड पर से हटा लिया और मुस्कुराती हुई मुझे देखने लगी और बोली कैसा लगा. मैने कहा "बहुत अक्चा और बिस्तेर पर एक तरफ लुढ़क गया. मेरे साथ साथ मा भी लुढ़क के मेरे बगल में लेट गई और मेरे होंठो और गालो को थोरी देर तक चूमती रही.
थोरी देर तक आँख बंद कर के परे रहने के बाद जब मैं उठा तो देखा की मा ने अपनी आँखे बंद कर रखी है और अपने हाथो से अपने चुचियों को हल्के हल्के सहला रही थी. मैं उठ कर बैठ गया और धीरे से मा के पैरो के पास चला गया. मा ने अपना एक पैर मोरे रखा था और एक पैर सीधा कर के रखा हुआ उसका पेटिकोट उसके जेंघो तक उठा हुआ था. पेटिकोट के उपर और नीचे के भागो के बीच में एक गॅप सा बन गया था. उस गॅप से उसकी झांग अंदर तक नज़र आ रही थी. उसकी गुदज जेंघो के उपर हाथ रख के मैं हल्का सा झुक गया और अंदर तक देखने के लिए हालाँकि अनादर रोस्नी बहुत कम थी परंतु फिर भी मुझे उसके काले काले झतो के दर्शन हो गये. झतो के कारण चूत तो ऩही दिखी परंतु चूत की खुसबु ज़रूर मिल गई. तभी मा ने अपनी आँखे खोल दी और मुझे अपने जेंघो के बीच झकते हुए देख कर बोली "है दैया उठ भी गया तू मैं तो सोच रही थी अभी कम से कम आधा घंटा शांत परा रहेगा, और मेरी जेंघो के बीच क्या कर रहा है, देखो इस लरके को बुर देखने के लिए दीवाना हुआ बैठा है," फिर मुझे अपने बाँहो में भर कर मेरे गाल पर चुम्मि काट कर बोली "मेरे लाल को अपनी मा का बुर देखना है ना, अभी दिखती हू मेरे छ्होरे, है मुझे ऩही पाता था की तेरे अंदर इतनी बेकरारी है बुर देखने की"
मेरी भी हिम्मत बढ़ गई थी "है मा जल्दी से खोलो और दिखा दो"
"अभी दिखती हू, कैसे देखेगा, बता ना"
"कैसे क्या मा, खोलो ना बस जल्दी से"
"तो ले ये है मेरे पेटिकोट का नारा खुद ही खोल के मा को नंगा कर दे और देख ले"
"है, मा मेरे से ऩही होगा, तुम खोलो ना"
"क्यों ऩही होगा, जब तू पेटिकोट ऩही खोल पाएगा तो आगे का काम कैसे करेगा"
"है मा आगे का भी काम करने दोगि क्या?"
मेरे इस सवाल पर मा ने मेरे गालो को मसालते हुए पुच्छ, "क्यों आगे का काम ऩही करेगा क्या, अपनी मा को ऐसे ही पायसा छ्होर देगा, तू तो कहता था की तुझे ठंडा कर दूँगा, पर तू तो मुझे गरम कर छ्होर्ने की बात कर रहा है"
"है मा, मेरा ये मतलब ऩही था, मुझे तो अपने कानो पर विस्वास ऩही हो रहा की तुम मुझे और आगे बढ़ने दोगि"
"गढ़े के जैसा लंड होने के साथ साथ तेरा तो दिमाग़ भी गढ़े के जैसा ही हो गया है, लगता है सीधा खोल के ही पुच्छना परेगा, बोल छोड़ेगा मुझे, छोड़ेगा अपनी मा को, मा की बुर चतेगा, और फिर उसमे अपना लॉरा डालेगा, बोल ना"
"है मा, सब करूँगा, सब करूँगा जो तू कहेगी वो सब करूँगा, है मुझे तो विस्वश ऩही हो रहा की मेरा सपना सच होने जा रहा है, ओह मेरे सपनो में आने वाली पारी के साथ सब कुच्छ करने जा रहा हू"
"क्यों सपनो में तुझे और कोई ऩही मैं ही दिखती थी क्या"
"हा मा, तुम्ही तो हो मेरे सपनो की परी, पूरे गाओं में तुमसे सुंदर कोई ऩही"
"है, मेरे 16 साल का जवान छ्होकरे को उसकी मा इतनी सुंदर लगती है क्या?"
"हा मा, सच में तुम बहुत सुंदर हो और मैं तुम्हे बहुत दीनो से चू...."
"हा, हा बोल ना क्या करना चाहता था, अब तो खुल के बात कर बेटे, शर्मा मत अपनी मा से अब तो हुमने शर्म की हर वो दीवार गिरा दी है जो जमाने ने हमारे लिए बनाई है"
"है मा मैं कब से तुम्हे चॉड्ना चाहता था पर कह ऩही पाता था"
"कोई बात ऩही बेटा अभी भी कुच्छ ऩही बिगरा है वो भला हुआ की आज मैने खुद ही पहल कर दी, चल आ देख अपनी मा को नंगा और आज से बन जा उसका सैययान"
कह कर मा बिस्तेर नीचे उतार गई और मेरे सामने आके खरी हो गई और धीरे धीरे करके अपने ब्लाउस के एक बटन को खोलने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे चाँद बदल में से निकल रहा है. धीरे धीरे उसकी गोरी गोरी चुचिया दिखने लगी. ओह गजब की चुचिया थी, देखने से लग रहा था जैसे की दो बरे नारियल दोनो तरफ लटक रहे हो. एक डम गोल और आगे से नुकीले तीर के जैसे. चुचियों पर नासो की नीली रेखाए स्पस्त दिख रही थी. निपल थोरे मोटे और एकद्ूम खरे थे और उनके चारो तरफ हल्का गुलबीपन लिए हुए गोल गोल घेरा था. निपल भूरे रंगे के थे. मा अपने हाथो से अपने चुचियों को नीचे से पकर कर मुझे दिखती हुई बोली "पसंद आई अपनी मा की चुचि, कैसी लगी बेटा बोल ना, फिर आगे का दिखौँगी"
"है मा तुम सच में बहुत सुंदर हो, ओह कितनी सुंदर चुउ..हिय है ओह"
मा ने अपने चुचियों पर हाथ फेरते हुए और अच्छे से मुझे दिखाते हुए हल्का सा हिलाया और बोली "खूब सेवा करनी होगी इसकी तुझे, देख कैसे शान से सिर उठाए खरी है इस उमर में भी, तेरे बाप के बस का तो है ऩही अब तू ही इन्हे संभालना" कह कर वो फिर अपने हाथो को अपने पेटिकोट के नारे पर ले गई और बोली "अब देख बेटा तेरा को जन्नत का दरवाजा दिखती हू, अपनी मा का स्पेशल मालपुआ देख, जिसके लिए तू इतना तरस रहा था". कह कर मा ने अपने पेटिकोट के नारे को खोल दिया. पेटिकोट उसके कमर से सरसरते हुए सीधा नीचे की गिर गया और मा ने एक पैर से पेटिकोट को एक तरफ उच्छल कर फेक दिया और बिस्तर के और नज़दीक आ गई फिर बोली " बेटा तूने तो मुझे एक डम बेशरम बना दिया", फिर मेरे लंड को अपने मुति में भर के बोली "ओह तेरे इस सांड जैसे लंड ने तो मुझे पागल बना दिया है, देख ले अपनी मा को जी भर के" मेरी नज़रे मा के जेंघो के बीच में टिकी हुई थी. मा की गोरी गोरी चिकनी रनो के बीच में काले काले झतो का एक तिकोना बना हुआ था. झांट बहुत ज़यादा बरे ऩही थे. झांतो के बीच में से उसकी गुलाबी चूत की हल्की झलक मिल रही थी, मैने अपने हाथो को मा के जेंघो पर रखा और थोरा नीचे झुक कर ठीक चूत के पास अपने चेहरे को ले जा के देखने लगा. मा ने अपने दोनो हाथ को मेरे सिर पर रख दिया और मेरे बालो से खेलने लगी फिर बोली "रुक जा ऐसे ऩही दिखेगा तुझे आराम से बिस्तर पर लेट के दिखती हू"
"ठीक है, आ जाओ बिस्तेर पर, मा एक बार ज़रा पिच्चे घुमओ ना"
"ओह, मेरा राजा मेरा पिच्छवारा भी देखना चाहता है क्या, चल पिच्छवारा तो मैं तुझे खरे खरे ही दिखा देती हू ले देख अपनी मा के बुर और गांद को". इतना कह कर मा पिच्चे घूम गई. ओह कितना सुंदर दृश्य था वो. इसे मैं अपनी पूरी जिंदगी में कभी ऩही भूल सकता. मा के चूत सच में बरे खूसूरत थे. एक डम मलाई जैसे, गोल-मटोल, गुदज, मांसल. और उस चूत के बीच में एक गहरी लकीर सी बन रही थी. जो की उसके गांद की खाई थी. मैने मा को थोरा झुकने को कहा तो मा झुक गई और आराम से देवनो मक्खन जैसे चुतारों को पकर के अपने हाथो से मसालते हुए उनके बीच की खाई को देखने लगा. दोनो चुतारों को बीच में गांद की भूरे रंग की च्छेद फुकफुका रही थी. एकद्ूम छ्होटी सी गोल च्छेद, मैने हल्के से अपने हाथ को उस च्छेद पर रख दिया और हल्के हल्के उसे सहलाने लगा, साथ में मैं चुतारों को भी मसल रहा था. पर तभी मा आगे घूम गई
"चल मैं थक गई खरे खरे अब जो करना है बिस्तर पर करेंगे". और वो बिस्तेर पर चाड गई. पलंग की पुष्ट से अपने सिर को टिका कर उसने अपने दोनो पैरो को मेरे सामने खोल कर फैला दिया और बोली "अब देख ले आराम से, पर एक बात तो बता तू देखने के बाद क्या करेगा कुच्छ मालूम भी है तुझे या ऩही" "है, मा चो....दुन्गा"
"अच्छा चोदेगा? , पर कैसे ज़रा बता तो सही कैसे चोदेगा "
"है मैं पहले तुम्हारी चूत चुसना चाहता हू"
"चल ठीक है चूस लेना, और क्या करेगा"
"ओह और.......... पता नहीं ...
"पता ऩही ये क्या जवाब हुआ पाता ऩही, जब कुच्छ पाता ऩही तो मा पर डोरे क्यों दाल रहा था"
"ओह मा मैने पहले किसी को किया ऩही है ना इसलिए मुझे पाता ऩही है, मुझे बस थोरा बहुत पाता है, जो की मैने गाँव के लड़कों के साथ सीखा था"
"तो गाँव के छोकरों ने ये ऩही सिखाया की कैसे किया जाता है, खाली यही सिखाया की मा पर डोरे डालो"
"ओह मा तू तो समझती ही ऩही अर्रे वो लोग मुझे क्यों सीखने लगे की तुम पर डोरे डालो, वो तो... वो तो तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो इसलिए मैं तुम्हे देखता था"
"ठीक है चल तेरी बात स्मझ गई बेटा की मैं तुझे सुंदर लगती हू पर मेरी इस सुंदरता का तू फायदा कैसे उठाएगा उल्लू ये भी तो बता दे ना, की खाली देख के मूठ मार लेगा"
" मा, ऩही मैं तुम्हे छोड़ना चाहता हू, मा तुम सीखा देना, सीखा दोगी ना ?" कह कर मैने बुरा सा मुँह बना लिया"
"है मेरा बेटा देख तो मा की लेने के लिए कैसे तरप रहा, आजा मेरे पायारे मैं तुझे सब सीखा दूँगी, तेरे जैसे लंड वाले बेटे को तो कोई भी मा सीखना चाहेगी, तुझे तो मैं सीखा पढ़ा के चुदाई का बादशाह बना दूँगी, आजा पहले अपनी मा की चुचियों से खेल ले जी भर के फिर तुझे चूत से खेलना सिखाती हू बेटा"
मैं मा के कमर के पास बैठ गया और मा तो पूरी नंगी पहले से ही थी मैने उसकी चुचियों पर अपना हाथ रख दिया और उनको धीरे धीरे सहलाने लगा. मेरे हाथ में सयद दुनिया की सबसे खूबसूरत चुचिया थी. ऐसी चुचिया जिनको देख के किसी का भी दिल मचल जाए. मैं दोनो चुचियों की पूरी गोलाई पर हाथ फेर रहा था. चुचिया मेरी हथेली में ऩही समा रही थी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत में घूम रहा हू. मा की चुचियो का स्पर्श ग़ज़ब का था. मुलायम, गुदज, और सख़्त गतिलापन ये सब अहसास सयद आक्ची गोल मटोल चुचियों को दबा के ही पाया जा सकता है. मुझे इन सारी चीज़ो का एक साथ आनंद मिल रहा था. ऐसी चुचि दबाने का सौभाग्या नसीब वालो को ही मिलता है इस बात का पाता मुझे अपने जीवन में बहुत बाद में चला जब मैने दूसरी अनेक तरह की चुचियों का स्वाद लिया.
मा के मुँह से हल्की हल्की आवाज़े आनी शुरू हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खीच लिया और अपने तपते हुए गुलाबी होंठो का पहला अनूठा स्पर्श मेरे होंठो को दिया. हम दोनो के होंठ एक दूसरे से मिल गये और मैं मा की दोनो चुचियों को पाकरे हुए उसके होंठो का रस ले रहा था. कुच्छ ही सेकेंड्स में हमारे जीभ आपस में टकरा रहे थे. मेरे जीवन का ये पहला चुंबन करीब दो तीन मिनिट्स तक चला होगा. मा के पतले होंठो को अपने मुँह में भर कर मैने चूस चूस कर और लाल कर दिया. जब हम दोनो एक दूसरे से अलग हुए तो दोनो हाँफ रहे थे. मेरे हाथ अब भी उसकी दोनो चुचिया पर थे और मैं अब उनको ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था. मा के मुँह से अब और ज़यादा तेज सिसकारिया निकलने लगी थी. मा ने सीस्यते हुए मुझसे कहा " ओह ओह स्स्सि......शबश ऐसे ही पायर करो मेरी चुचियो से, हल्के हल्के आराम से मस्लो बेटा, ज़यादा ज़ोर से ऩही, ऩही तो तेरी मा को मज़ा ऩही आएगा, धीरे धीरे मस्लो".मेरे हाथ अब मा की चुचियों के निपल से खेल रहे थे. उसके निपल अब एक डम सख़्त हो चुके थे. हल्का कालापन लिए हुए गुलबी रंग के निपल खरे होने के बाद ऐसे लग रहे थे जैसे दो गोरे गुलाबी पाहरियों पर बादाम की गिरी रख दी गई हो. निपल के चारो ओर उसी रंग का घेरा थे. ध्यान से देखने पर मैने पाया की उस घेरे पर छ्होटे छ्होटे दाने से उगे हुए थे. मैं निपपलो को अपनी दो उंगलियों के बीच में लेकर धीरे-धीरे मसल रहा था और पायर से उनको खींच रहा था. जब भी मैं ऐसा करता तो मा की सिसकिया और तेज हो जाती थी. मा की आँके एक डम नासीली हो चुकी थी और वो सिसकारिया लेते हुए बुदबुदाने लगी "ओह बेटा ऐसे ही, ऐसे ही, तुझे तो सीखने की भी ज़रूरत ऩही है रे, ओह क्या खूब मसल रहा है मेरे पयरे, ऐसे ही कितने दिन हो गये जब इन चुचियों को किसी मर्द के हाथ ने मसला है या पायर किया है, कैसे तरसती थी 
मैं की काज़ कोई मेरी इन चुचियों को मसल दे पायर से सहला दे, पर आख़िर में अपना बेटा ही काम आया, आजा मेरे लाल" कहते हुए उसने मेरे सिर को पकर कर अपनी चुचियों पर झुका लिया. मैं मा का इशारा साँझ गया और मैने अपने होंठ मा की चुचियों से भर लिए. मेरे एक हाथ में उसकी एक चुचि और दूसरी चुचि पर मेरे होंठ चिपके हुए थे. मैने धीरे धीरे उसके चुचियों को चूसना सुरू कर दिया था. मैं ज़यादा से ज़यादा चुचि को अपने मुँह में भर के चूस रहा था. मेरे अंदर का खून इतना उबाल मरने लगा था की एक दो बार मैने अपने दाँत भी चुचियों पर गर्अ दिए थे, जिस से मा के मुँह से अचानक से चीख निकल गई थी. पर फिर भी उसने मुझे रोका ऩही वो अपने हाथो को मेरे सिर के पिच्चे ले जा कर मुझे बालो से पकर के मेरे सिर को अपनी चुचियों पर और ज़ोर ज़ोर से दबा रही थी और डाँट काटने पर एक डम से घुटि घुटि आवाज़ में चीकते हुए बोली "ओह धीरे बेटा, धीरे से चूसो चुचि को ऐसे ज़ोर से ऩही काट ते है", फिर उसने अपनी चुचि को अपने हाथ से पकरा और उसको मेरे मुँह में घुसने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी चुचि को पूरा का पूरा मेरे मुँह में घुसा देना चाहती हो और सीस्यसी "ओह राजा मेरे निपल को चूसो ज़रा, पूरे निपल को मुँह में भर लो और कस कस के चूसो राजा जैसे बचपन में दूध पीने के लिए चूस्ते थे". मैने अब अपना ध्यान निपलेस पे कर दिया और निपल को मुँह में भर कर अपनी जीभ उसके चारो तरफ गोल गोल घूमते हुए चूसने लगा. मैं अपनी जीभ को निपल के चारो तरफ के घेरे पर भी फिरा रहा था. निपल के चारो तरफ के घेरे पर उगे हुए दानो को अपनी जीभ से कुरेदते हुए निपल को चूसने पर मा एक डम मस्त हो जा रही थी और उसके मुँह से निकलने वाली सिसकिया इसकी गवाही दे रही थी. मैं उसकी चीखे और सिसकिया सुन कर पहले पहल तो डर गया था पर मा के द्वारा ये समझाए जाने पर की ऐसी चीखे और सिसकिया इस बात को बतला रही है की उसे मज़ा आ रहा है तो फिर दुगुने जोश के साथ अपने काम में जुट गया था. जिस चुचि को मैं चूस रहा था वो अब पूरी तरह से मेरे लार और थूक से भीग चुकी थी और लाल हो चुकी फिर भी मैं उसे चूसे जा रहा था, ताभ मा ने मेरे सिर को अपनी वाहा से हटा के अपनी दूसरी चुचि की तरफ करते हुए कहा "है खाली इसी चुचि को चूस्ता रहेगा, दूसरी को भी चूस, उसमे भी वही स्वाद है", फिर अपनी दूसरी चुचि को मेरे मुँह में घुसते हुए बोली "इसको भी चूस चूस के लाल कर दे मेरे लाल, दूध निकल दे मेरे सैय्या, एक डम आम के जैसे चूस और सारा रस निकल दे अपनी मा की चुचियों का, किसी काम की ऩही है ये, कम से कम मेरे लाल के काम तो आएँगी" मैं फिर से अपने काम में जुट गया और पहली वाली चुचि दबाते हुए दूसरी को पूरे मनोयोग से चूसने लगा. मा सिसकिया ले रही थी और चुस्वा रही थी कभी कभी अपना हाथ मेरे कमर के पास ले जा के मेरे लोहे जैसे ताने हुए लंड को पकर के मारोर रही थी कभी अपने हाथो से मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबा रही थी. इस तरह काफ़ी देर तक मैं उसकी चुचियों को चूस्ता रहा, फिर मा ने खुद अपने हाथो से मेरा सिर पकर के अपनी चुचियों पर से हटाया और मुस्कुराते मेरे चेहरे की र देखने लगी. मेरे होंठ मेरे कुध के थूक से भीगे हुए थे. मा की बाए चुचि अभी भी मेरे लार से चमक रही थी जबकि दाहिनी चुचि पर लगा थूक सुख चुका था पर उसकी दोनो चुचिया लाल हो चुकी थी, और निपपलो का रंग हल्का कला से पूरा कला हो चुका था (ऐसा बहुत ज़यादा चूसने पर खून का दौरा भर जाने के कारण हुआ था).
मा ने मेरे चेहरे को अपने होंठो के पास खीच कर मेरे होंठो पर एक गहरा चुंबन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेकटे हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली "खाली दूध ही पिएगा या मालपुआ भी खाएगा, देख तेरा मालपुआ तेरा इंतेज़ार कर रहा है राजा" मैने भी मा के होंठो का चुंबन लिया और फिर उसके भरे भरे गालो को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा और फिर उसके नाक को चूमा और फिर धीरे से बोला "ओह मा तुम सच में बहुत सुंदर हो" इस पर मा ने पुचछा
"क्यों मज़ा आया ना चूसने में"
"हा मा, गजब का मज़ा आया, मुझे आज तक ऐसा मज़ा कभी ऩही आया था". तब मा ने अपने पैरो के बीच इशारा करते हुए कहा " नीचे और भी मज़ा आएगा, यहा तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है, आजा बेटे आज तुझे असली मालपुआ खिलती हू" मैं धीरे से खिसक कर मा के पैरो पास आ गया. मा ने अपने पैरो को घुटने के पास से मोर कर फैला दिया और बोली "यहा, बीच में, दोनो पैर के बीच में आ के बैठ तब ठीक से देख पाएगा अपनी मा का खजाना" मैं उठ कर मा के दोनो पैरो के बीच घुटनो के बाल बैठ गया और आगे की र झुका, सामने मेरे वो चीज़ थी जिसको देखने के लिए मैं मारा जा रहा था. मा ने अपनी दोनो जंघे फैला दी और अपने हाथो को अपने बुर के उपर रख कर बोली "ले देख ले अपना मालपुआ, अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा" मेरी खुशी का तो ठिकाना ऩही था. सामने मा की खुली जाँघो के बीच झांतो का एक तिकोना सा बना हुआ था. इस तिकोने झांतो के जंगल के बीच में से मा की फूली हुए गुलाबी बुर का चीड़ झाँक रहा था जैसे बदलो के झुर्मुट में से चाँद झकता है. मैने अपने कपते हाथो को मा के चिकने जाँघो पर रख दिया और थोरा सा झुक गया. उसके बुर के बॉल बहुत बरे बरे ऩही थे छ्होटे छ्होटे घुंघराले बॉल और उनके बीच एक गहरी लकीर से चीरी हुई थी. मैने अपने दाहिने हाथ को जाँघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुचछा "मा मैं इसे च्छू लू......."
"च्छू ले, तेरे छुने के लिए ही तो खोल के बैठी हू"
मैने अपने हाथो को मा की चूत को उपर रख दिया. झांट के बॉल एक डम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे और ऐसा लग रहा थे, हालाँकि आम तौर पर झांट के बॉल थोरे मोटे होते है और उसके झांट के बॉल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे. हल्के हल्के मैं उन बालो पर हाथ फिरते हुए उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रहा था. अब चूत की दरार और उसकी मोटी मोटी फांके स्पस्त रूप से दिख रही थी. मा का बुर एक फूला हुआ और गद्देदार लगता था. छूट की मोटी मोटी फांके बहुत आकर्षक लग रही थी. मेरे से रहा ऩही गया और मैं बोल परा "ओह मा ये तो सच मुच में मालपुए के जैसा फूला हुआ है".
"हा बेटा यही तो तेरा असली मालपुआ है आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे यही खाना"
"हा मा मैं तो हमेशा यही मालपुआ ख़ौँगा, ओह मा देखो ना इस से तो रस भी निकल रहा है" (छूट से रिस्ते हुए पानी को देख कर मैने कहा).
"बेटा यही तो असली माल है हम औरतो का, ये रस मैं तुझे अपनी बुर की थाली में सज़ा कर खिलौंगी, दोनो फाँक को खोल के देख कैसा दिखता है, हाथ से दोनो फाँक पकर कर खीच कर बुर को चिदोर कर देख"
सच बताता हू दोनो फांको को चियर कर मैने जब चूत के गुलाबी रस से भीगे च्छेद को देखा तो मुझे यही लगा की मेरा तो जानम सफल हो गया है. छूट के अंदर का भाग एक डम गुलाबी था और रस भीगा हुआ था जब मैने उस चीड़ को च्छुआ तो मेरे हाथो में चिप छिपा सा रस लग गया. मैने उस रस को वही बिस्तर के चादर पर पोच्च दिया और अपने सिर को आगे बढ़ा कर मा के बुर को चूम लिया. मा ने इस पर मेरे सिर को अपने चूत पर दबाते हुए हल्के से सिसकते हुए कहा "बिस्तर पर क्यों पोच्च दिया, उल्लू, यही मा का असली पायर जो की तेरे लंड को देख के चूत के रास्ते छलक कर बाहर आ रहा है, इसको चक के देख, चूस ले इसके"
"है मा चुसू मैं तेरे बुर को, है मा चतु इसको"
"हा बेटा छत ना चूस ले अपनी मा के चूत के सारे रस को, दोनो फांको को खोल के उसमे अपनी जीभ दाल दे और चूस, और ध्यान से देख तू तो बुर के केवल फांको को देख रहा है, देख मैं तुझे दिखती हू" और मा ने अपने चूत को पूरा चिदोर दिया और अंगुली रख कर बताने लगी "देख ये जो छ्होटा वाला च्छेद है ना वो मेरे पेशाब करने वाला च्छेद है, बुर में दो दो च्छेद होते है, उपर वाला पेशाब करने के काम आता है और नीचे वाला जो ये बरा च्छेद है वो छुड़वाने के काम आता है इसी च्छेद में से रस निकालता है ताकि मोटे से मोटा लंड आसानी से चूत को छोड़ सके, और बेटा ये जो पेशाब वाले च्छेद के ठीक उपर जो ये नुकीला सा निकला हुआ है वो क्लिट कहलाता है और ये औरत को गर्म करने का अंतिम हथियार है. इसको च्छुटे ही औरत एक डम गरम हो जाती है, समझ में आया"
"हा मा, आ गया साँझ में है कितनी सुंदर है ये तुम्हारी बुर, मैं चतु इसे मा.." "हा बेटा, अब तू चाटना शुरू कर दे, पहले पूरी बुर के उपर अपनी जीभ को फिरा के चाट फिर मैं आगे बेटाटी जाती हू कैसे करना है"
मैने अपनी जीभ निकल ली और मा की बुर पर अपने ज़ुबान को फिरना शुरू कर दिया, पूरी चूत के उपर मेरी जीभ चल रही थी और मैं फूली हुई गद्देदार बुर को अपनी खुरदरी ज़बान से उपर से नीचे तक छत रहा था. अपनी जीभ को दोनो फांको के उपर फेरते हुए मैं ठीक बुर के दरार पर अपनी जीभ रखी और धीरे धीरे उपर से नीचे तक पूरे चूत की दरार पर जीभ को फिरने लगा, बुर से रिस रिस कर निकालता हुआ रस जो बाहर आ रहा था उसका नमकीन स्वाद मेरे मुझे मिल रहा था. जीभ जब चूत के उपरी भाग में पहुच कर क्लिट से टकराती थी तो मा की सिसकिया और भी तीज हो जाती थी. मा ने अपने दोनो हाथो को शुरू में तो कुच्छ देर तक अपनी चुचियों पर रखा था और अपनी चुचियों को अपने हाथ से ही दबाती रही मगर बाद में उसने अपने हाथो को मेरे सिर के पिच्चे लगा दिया और मेरे बालो को सहलाते हुए मेरे सिर को अपनी चूत पर दबने लगी.
मेरी चूत चूसा बदस्तूर जारी थी और अब मुझे इस बात का अंदाज़ा हो गया था की मा को सबसे ज़यादा मज़ा अपनी क्लिट की चूसा में आ रहा है इसलिए मैने इस बार अपने जीभ को नुकीला कर के क्लिट से भीरा दिया और केवल क्लिट पर अपनी जीभ को तेज़ी से चलाने लगा. मैं बहुत तेज़ी के साथ क्लिट के उपर जीभ चला रहा था और फिर पूरे क्लिट को अपने होंठो के बीच दबा कर ज़ोर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा, मा ने उत्तेजना में अपने ****अरो को उपर उच्छल दिया और ज़ोर से सिसकिया लेते हुए बोली "है दैया, उईईइ मा सी सी..... चूस ले ओह चूस ले मेरे भज्नसे को ओह, सी क्या खूब चूस रहा है रे तू, ओह मैने तो सोचा भी ऩही थऽआअ की तेरी जीभ ऐसा कमाल करेगी, है रे बेटा तू तो कमाल का निकला ओह ऐसे ही चूस अपने होंठो के बीच में भज्नसे को भर के इसी तरह से चूस ले, ओह बेटा चूसो, चूसो बेटा......"
मा के उत्साह बढ़ने पर मेरी उत्तेजना अब दुगुनी हो चुकी थी और मैं दुगुने जोश के साथ एक कुत्ते की तरह से लॅप लॅप करते हुए पूरे बुर को छाते जा रहा था. अब मैं चूत के भज्नसे के साथ साथ पूरे चूत के माँस (गुड्डे) को अपने मुँह में भर कर चूस रहा था और, मा की मोटी फूली हुई चूत अपने झांतो समेत मेरे मुँह में थी. पूरी बुर को एक बार रसगुल्ले की तरह से मुँह में भर कर चूसने के बाद मैने अपने होंठो को खूल कर चूत के छोड़ने वाले च्छेद के सामने टिका दिया और बुर के होंठो से अपने होंठो को मिला कर मैने खूब ज़ोर ज़ोर से चूसना सुरू कर दिया. बर का नशीला रस रिस रिस कर निकल रहा था और सीधा मेरे मुँह में जा रहा था. मैने कभी सोचा भी ऩही था की मैं चूत को ऐसे चुसूंगा या फिर चूत की चूसा ऐसे की जाती है, पर सयद चूत सामने देख कर चूसने की कला अपने आप आ जाती है. फुददी और जीभ की लरआई अपने आप में ही इतनी मजेदार होती है की इसे सीखने और सीखने की ज़रूरत ऩही पार्टी, बस जीभ को फुददी दिखा दो बाकी का काम जीभ अपने आप कर लेती है. मा की सिसकिया और शाबाशी और तेज हो चुकी थी, मैने अपने सिर को हल्का सा उठा के मा को देखते हुए अपने बुर के रस से भीगे होंठो से मा से पुचछा, "कैसा लग रहा है मा, तुझे अक्चा लग रहा है"
मा ने सिसकते हुए कहा " है बेटा, मत पुच्छ, बहुत अच्छा लग रहा है, मेरे लाल, इसी मज़े के लिए तो तेरी मा तरस रही थी. चूस ले मेरे बुर कूऊऊओ और ज़ोर से चुस्स्स्स्सस्स.. . सारा रस पी लीई मेरे सैय्या, तू तो जादूगर है रीईईई, तुझे तो कुच्छ बताने की भी ज़रूरत ऩही, है मेरे बुर के फांको के बीच में अपनी जीभ डाल के चूस बेटा, और उसमे अपने जीभ को लिबलिबते हुए अपनी जीभ को मेरी चूत के अंदर तक घुमा दे, है घुमा दे राजा बेटा घुमा दे...." मा के बताए हुए रास्ते पर चलना तो बेटे फ़र्ज़ बनता है और उस फ़र्ज़ को निभाते हुए मैने बुर के दोनो फांको को फैला दिया और अपनी जीभ को उसके चूत में पेल दिया. बर के अंदर जीभ घुसा कर पहले तो मैने अपनी जीभ और उपरी होंठ के सहारे बुर के एक फाँक को पार्कर के खूब चूसा फिर दूसरी फाँक के साथ भी ऐसा ही किया फिर चूत को जितना चिदोर सकता था उतना चिदोर कर अपने जीभ को बुर के बीच में दाल कर उसके रस को चटकारे ले कर चाटने लगा. छूट का रस भूत नासिला था और मा की चूत कामो-उत्तेजना के कारण खूब रस छ्होर रही थी रुँघहीन, हल्का चिप-छिपा रस छत कर खाने में मुझे बहुत आनंद आ रहा था, मा घुटि घुटि आवाज़ में चीखते हुए बोल परी "ओह चतो ऐसे ही चतो मेरे राजा, छत छत के मेरे सारे रस को खा जाओ, है रे मेरा बेटा, देखो कैसे कुत्ते की तरह से अपनी मा की बुर को छत रहा है ओह छत ना ऐसे ही छत मेरे कुत्ते बेटे अपनी कुटिया मा की बुर को छत और उसके बुर के अंदर अपने जीभ को हिलाते हुए मुझे अपने जीभ से छोड़ दाल". मुझे बरा असचर्या हुआ की एक तो मा मुझे कुत्ता कह रही है फिर खुद को भी कुट्टिया कह रही है. पर मेरे दिलो-दिमाग़ में तो अभी केवल मा की रसीलिी बुर की चटाई घुसी हुई थी इसलिए मैने इस तरफ से ध्यान ऩही दिया. मा की आगया का पालन किया और जैसा उसने बताया था उसी तरह से अपने जीभ से ही उसकी चूत को चॉड्ना शुरू कर दिया. मैं अपनी जीभ को तेज़ी के साथ बुर में से अंदर बाहर कर रहा था और साथ ही साथ चूत में जीभ को घूमते हुए चूत के गुलाबी च्छेद से अपने होंठो को मिला के अपने मुँह को चूत पर रगर भी रहा था. मेरी नाक बार बार चूत के भज्नसे से टकरा रही थी और सयद वो भी मा के आनंद का एक कारण बन रही थी. मेरे दोनो हाथ मा के मोटे गुदज जाँघो से खेल रहे थे. तभी मा ने तेज़ी के साथ अपने ****अरो को हिलना शुरू कर और ज़ोर ज़ोर से हफ्ते हुए बोलने लगी "ओह निकल जाएगा ऐसे ही बुर में जीभ चलते रहना बेटा ओह, सी सी सीईई, साली बहुत खुजली करती थी आज निकल दे इसका सारा पानी" और अब मा दाँत पीस कर लग भर चीकते हुए बोलने लगी ओह हूऊओ सीईईईईईई साले कुत्ते, मेरे पायारे बेटे मेरे लाल है रे चूस और ज़ोर से चूस अपनी मा के बुर को जीभ से छोड़ डीईई अभी,,,,,,,सीईईईईई ईईइ छोड़नाअ कुत्ते हरमजड़े और ज़ोर से छोड़ सलीईई, ,,,,,,,, छोड़ दाल अपनी मा को है निकाला रे मेरा तो निकल गया ओह मेरे चुड़ककर बेटे निकल दिया रे तूने तो.... अपनी मा को अपने जीभ से छोड़ डाला" कहते हुए मा ने अपने ****अरो पहले तो खूब ज़ोर ज़ोर से उपर की तरफ उछाला फिर अपनी आँखो को बंद कर के ****अरो को धीरे धीरे फुदकते हुए झरने लगी "ओह गई मैं मेरे राजा, मेरा निकल गया मेरे सैय्या है तूने मुझे जन्नत की सैर करवा दी रे, है मेरे बेटे ओह ओह मैं गई……." मा की बुर मेरे मुँह पर खुल बंद हो रही थी. बर के दोनो फांको से रस अब भी रिस रहा था पर मा अब थोरी ठंडी पर चुकी थी और उसकी आँखे बंद थी उसने दोनो पैर फैला दिए थे और सुस्त सी होकर लंबी लंबी साँसे छ्होर्थी हुई लेट गई. मैने अपने जीभ से छोड़ छोड़ कर अपनी मा को झार दिया था. मैने बुर पर से अपने मुँह को हटा दिया और अपने सिर को मा की जाँघो पर रख कर लेट गया. कुच्छ देर तक ऐसे ही लेते रहने के बाद मैने जब सिर उठा के देखा तो पाया की मा अब भी अपने आँखो को बंद किए बेशुध होकर लेती हुई है. मैं चुप चाप उसके पैरो के बीच से उठा और उसकी बगल में जा कर लेट गया. मेरा लंड फिर से खरा हो चुका था पर मैने चुप चाप लेटना ही बेहतर समझा और मा की र करवट लेट कर मैने अपने सिर को उसके चुचियों से सता दिया और एक हाथ पेट पर रख कर लेट गया. मैं भी थोरी बहुत थकावट महसूस कर रहा था, हालाँकि लंड पूरा खरा था और छोड़ने की इच्छा बाकी थी.
मैं अपने हाथो से मा के पेट नाभि और जाँघो को सहला रहा था. मैं धीरे धीरे ये सारा काम कर रहा था और कोशिश कर रहा था की मा ना जागे. मुझे लग रहा था की अब तो मा सो गई और मुझे सयद मूठ मार कर ही संतोष करना परेगा. इसलिए मैं चाह रहा था की सोते हुए थोरा सा मा के बदन से खेल लू और फिर मूठ मार लूँगा. मुझे मा के जाँघ बरे अच्छे लगे और मेरे दिल कर रहा था की मैं उन्हे चुमू और चतु. इसलिए मैं चुप चाप धीरे से उठा और फिर मा के पैरो के पास बैठ गया. मा ने अपना एक पैर फैला रखा था और दूसरे पैर को घुटनो के पास से मोर कर रखा हुआ था. इस अवस्था में वो बरी खूबसूरत लग रही थी, उसके बॉल थोरे बिखरे हुए थे एक हाथ आँखो पर और दूसरा बगल में. पैरो के इस तरह से फैले होने से उसकी बुर और गांद दोनो का च्छेद स्पस्त रूप से दिख रहा था. धीरे धीरे मैने अपने होंठो को उसके जाँघो पर फेरने लगा और हल्की हल्की चुम्मिया उसके रनो से शुरू कर के उसके घुटनो तक देने लगा. एक डम मक्खन जैसी गोरी चिकनी जाँघो को अपने हाथो से पकर कर हल्के हल्के मसल भी रहा मेरा ये काम थोरी देर तक चलता रहा, तभी मा ने अपनी आँखे खोली और मुझे अपने जाँघो के पास देख कर वो एक डम से चौंक कर उठ गई और पायर से मुझे अपने जाँघो के पास से उठाते हुए बोली "क्या कर रहा है बेटे....... ज़रा आँख लग गई थी, देख ना इतने दीनो के बाद इतने अcचे से पहली बार मैने वासना का आनंद उठाया है, इस तरह पिच्छली बार कब झारी थी मुझे तो ये भी याद ऩही, इसीलिए सयद संतुष्टि और थकान के कारण आँख लग गई"
"कोई बात ऩही मा तुम सो जाओ". तभी मा की नज़र मेरे 8.5 इंच के लौरे की तरफ गई और वो चौंक के बोली "अरे ऐसे कैसे सो जौ, (और मेरा लॉरा अपने हाथ में पकर लिया) मेरे लाल का लंड खरा हो के बार बार मुझे पुकार रहा है और मैं सो जौ"
"ओह मा, इसको तो मैं हाथ से ढीला कर लूँगा तुम सो जाओ"
"ऩही मेरे लाल आजा ज़रा सा मा के पास लेट जा, थोरा डम ले लू फिर तुझे असली चीज़ का मज़ा दूँगी"
मैं उठ कर मा के बगल में लेट गया. अब हम दोनो मा बेटे एक दूसरे की ओर करवट लेते हुए एक दूसरे से बाते करने लगे. मा ने अपना एक पैर उठाया और अपनी मोटी जाँघो को मेरे कमर पर दाल दिया. फिर एक हाथ से मेरे खरे लौरे को पकर के उसके सुपरे के साथ धीरे धीरे खेलने लगी. मैं भी मा की एक चुचि को अपने हाथो में पकर कर धीरे धीरे सहलाने लगा और अपने होंठो को मा के होंठो के पास ले जा कर एक चुंबन लिया. मा ने अपने होंठो को खोल दिया. चूमा छाति ख़तम होने के बाद मा ने पुचछा "और बेटे, कैसा लगा मा की बुर का स्वाद, अक्चा लगा या ऩही"
"है मा बहुत स्वादिष्ट था, सच में मज़ा आ गया"
"अक्चा, चलो मेरे बेटे को अच्छा लगा इस से बढ़ कर मेरे लिए कोई बात ऩही"
"मा तुम सच में बहुत सुंदर हो, तुम्हारी चुचिया कितनी खूबसूरत है, मैं.... मैं क्या बोलू मा, तुम्हारा तो पूरा बदन खूबसूरत है."
"कितनी बार बोलेगा ये बात तू मेरे से, मैं तेरी आनहके ऩही पढ़ सकती क्या, जिनमे मेरे लिए इतना पायर च्चालकता है". मैं मा से फिर पूरा चिपक गया. उसकी चुचिया मेरी च्चती में चुभ रही थी और मेरा लॉरा अब सीधा उसकी चूत पर ठोकर मार रहा था. हम दोनो एक दूसरे की आगोश में कुच्छ देर तक ऐसे ही खोए रहे फिर मैने अपने आप को अलग किया और बोला "मा एक सवाल करू"
"हा पुच्छ क्या पुच्छना है"
"मा, जब मैं तुम्हारी चूत छत रहा था तब तुमने गालिया क्यों निकाली"
"गालिया, और मैं, मैं भला क्यों कर गालिया निकलने लगी"
"ऩही मा तुम गालिया निकल रही थी, तुमने मुझे कुत्ता कहा और और खुद को कुट्टिया कहा, फिर तुमने मुझे हरामी भी कहा"
"मुझे तो याद ऩही बेटा की ऐसा कुच्छ मैने तुम्हे कहा था, मैं तो केवल थोरा सा जोश में आ गई थी और तुम्हे बता रही थी कैसे क्या करना है, मुझे तो एक डम याद ऩही की मैने ये साबद कहे है"
"ऩही मा तुम ठीक से याद करने की कोशिश करो तुमने मुझे हरामी या हरमज़दा कहा था और खूब ज़ोर से झार गई थी"
"बेटा, मुझे तो ऐसा कुच्छ भी याद ऩही है, फिर भी अगर मैने कुच्छ कहा भी था तो मैं अपनी र से माफी मांगती हू, आगे से इन बतो का ख्याल रखूँगी"
"ऩही मा इसमे माफी माँगने जैसी कोई बात ऩही है, मैने तो जो तुम्हारे मुँह से सुना उसे ही तुम्हे बता दिया, खैर जाने दो तुम्हारा बेटा हू अगर तुम मुझे डूस बीश गालिया दे भी दोगि तो क्या हो जाएगा"
"ऩही बेटा ऐसी बात ऩही है, अगर मैं तुझे गालिया दूँगी तो हो सकता है तू भी कल को मेरे लिए गालिया निकले और मेरे प्रति तेरा नज़रिया बदल जाए और तू मुझे वो सम्मान ना दे जो आजतक मुझे दे रहा है"
नही मा ऐसा कभी ऩही होगा, मैं तुम्हे हमेशा पायर करता रहूँगा और वही सम्मान दूँगा जो आजतक दिया है, मेरी नॅज़ारो में तुम्हारा स्थान हमेशा उँछ रहेगा"
मसलते मसलते मेरी नज़र मा के सिकुर्ते फैलते हुए गांद के छेद पर परी. मेरे मन मैं आया की क्यों ना इसका स्वाद भी चखा जाए देखने से तो मा की गांद वैसे भी काफ़ी खूबसूरत लग रही थी जैसे गुलाब का फूल हो. मैने अपनी लपलपाति हुई जीभ को उसके गांद की छेद पर लगा दिया और धीरे धीरे उपर ही उपर लपलपते हुए चाटने लगा. गांद पर मेरी जीभ का स्पर्श पा कर मा पूरी तरह से हिल उठी.
"ओह ये क्या कर रहा है, ओह बरा अक्चा लग रहा है रीईए, कहा से सीखा ये, तू तो बरा कलाकार है रीईई बेटीचोड़, है राम देखो कैसे मेरी बुर को चाटने के बाद मेरी गांद को छत रहा है, तुझे मेरी गांद इतनी अच्छी लग रही है की इसको भी छत रहा है, ओह बेटा सच में गजब का मज़ा आ रहा है, छत छत ले पूरे गांद को छत ले ओह ओह उूुुुुुऊउगगगगगगगग" .
मैने पूरे लगान के साथ गांद के छेद पर अपने जीभ को लगा के, दोनो हाथो से दोनो ****अरो को पकर कर छेद को फैलया और अपनी नुकीली जीभ को उसमे ठेलने की कोशिश करने लगा. मा को मेरे इस काम में बरी मस्ती आ रही थी और उसने खुद अपने हाथो को अपने ****अरो पर ले जा कर गांद के छेद को फैला दिया और मुझ जीभ पेलने के लिए उत्साहित करने लगी. "है रे सस्स्स्स्सिईईईईई पेल दे जीभ को जैसे मेरी बुर में पेला था वैसे ही गांद के छेद में भी पेल दे और पेल के खूब छत मेरी गांद को है दियायया मार गई रीईईई, ओह इतना मज़ा तो कभी ऩही आया था, ओह देखो कैसे गांद छत रहा है,,,,,,,,सस्स्स्स्ससे ईईई चतो बेटा चतो और ज़ोर से चतो, मधर्चोड़, सला गन्दू"
मैं पूरी लगान से गांद छत रहा था. मैने देखा की चूत का गुलाबी छेद अपने नासिले रस को टपका रहा है तो मैने अपने होंठो को फिर से बुर के गुलाबी छेद पर लगा दिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा जैसे की पीपे लगा के कोकोकॉला पे रहा हू, सारे रस को छत के खाने के बाद मैने बुर के छेद में जीभ को पेल कर अपने होंठो के बीच में बुर के भज्नसे को क़ैद कर लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से चूसा शुरू कर दी. मा के लिए अब बर्दाश्त करना श्यद मुश्किल हो रहा था उसने मेरे सिर को अपनी बुर से अलग करते हुए कहा "अब छ्होर बहिँचोड़, फिर से चूस के ही झार देगा क्या, अब तो असली मज़ा लूटने का टाइम आ गया है, है बेटा राजा अब चल मैं तुझे जन्नत की सैर कराती हू अब अपनी मा की चुदाई करने का मज़ा लूट मेरे राजा, चल मुझे नीचे उतरने दे साले"
मैने मा की बुर पर से मुँह हटा लिया. वो जल्दी से नीचे उतार कर लेट गई और अपने पैरो को घुटनो के पास से मोर कर अपनी दोनो जाँघो को फैला दिया और अपने दोनो हाथो को अपनी बुर के पास ले जा कर बोली "आ जा राजा जल्दी कर अब ऩही रहा जाता, जल्दी से अपने मूसल को मेरी ओखली में डाल के कूट दे, जल्दी कर बेटा दल दे अपना लॉरा मा की पयासी चूत में" मैं उसके दोनो जाँघो के बीच में आ गया पर मुझे कुच्छ समझ में ऩही आ रहा था की क्या करू, फिर भी मैने अपने खरे लंड को पकरा और मा के उपर झुकते हुए उसकी बुर से अपने लंड को सता दिया. मा ने लंड के बुर से सात ते ही कहा "हा अब मार धक्का और घुसा दे अपने घोरे जैसे लंड को मा की बिल में" मैने धक्का मार दिया पर ये क्या लंड तो फिसल कर बुर के बाहर ही रगर खा रहा था, मैने दुबारा कोशिश की फिर वही नतीज़ा ढक के तीन पट फिर लंड फिसल के बाहर, इस पर मा ने कहा "रुक जा मेरे अनारी सैय्या, मुझे ध्यान रखना चाहिए था तू तो पहली बार चुदाई कर रहा है ना, अभी तुझे मैं बेटाटी हू" फिर अपने दोनो हाथो को बुर पर ले जा कर चूत के दोनो फांको को फैला दिया, बुर के अंदर का गुलाबी छेद नज़र आने लगा था, बुर एक डम पानी से भीगी हुई लग रही थी, बुर चिदोर का मा बोली "ले मैने तेरे लिए अपने चूत को फैला दिया है अब आराम से अपने लंड को ठीक निशाने पर लगा के पेल दे". मैने अपने लंड को ठीक चूत के खुले हुए मुँह पर लगाया और धकका मारा, लंड थोरा सा अंदर को घुसा, पानी लगे होने के कारण लंड का सुपरा अंदर चला गया था, मा ने कहा "शाबाश ऐसे ही सुपरा चला गया अब पूरा घुसा दे मार धक्का कस के और चोद डाल मेरी बुर को बहुत खुजली मची हुई है" मैने अपनी गांद तक का ज़ोर लगा के धक्का मार दिया पर मेरा लंड में ज़ोर की दर्द की लहर उठी और मैने चीखते हुए झट से लंड को बाहर निकल लिया. मा ने पुचछा "क्या हुआ, चिल्लाता क्यों है"
 
 
 
 
 

धोबन और उसका बेटा-PART2 OF THE STORY

Share and Enjoy:

0 comments for this post

Leave a reply

We will keep You Updated...
Sign up to receive breaking news
as well as receive other site updates!
Subscribe via RSS Feed subscribe to feeds
Sponsors
Template By SpicyTrickS.comSpicytricks.comspicytricks.com
Template By SpicyTrickS.comspicytricks.comSpicytricks.com
Popular Posts
Recent Stories
  • Vahini la zavalo - marathi Hindi sex kahani

    Vahini la zavalo - marathi Hindi sex kahani Mai jab bhiBhaiya ke gharjata hu to mujhe, hamesh se hi vahini ko dekhkar use chodane ki ichchyahoti hai. Uska sunder sa chehare ko dekh kar na jane maine kitne barmuthth mari hai. Par use nahi chod paya. Sadi ke baad se hi Bhaiyahardam kaam karne ke liye bahar hi rahe hai, [...]

  • Chachi ki pyaas - Hindi sex kahani

    Chachi ki pyaas - Hindi sex kahani Hi friends my name is Mr H (Code name) yeh story jo m app ko sonany ja raha hon sachi kahani hay please comment Kr k feedback zaroor dijya ga pehly m apny bary m batata chaloon hight 5.11 hay mery laan ka size 6 inch hay aur age 23 hay m abi parh raha hon ab story ki tarf ata hon[...]

  • Bahen our didi ki eksath chudai

    Bahen our didi ki eksath chudai Meri shadi ho chuki hai, meri biwi ka naam hai simran pyar se main use simi bulata hu, simi bahut sexy to nahin pur uske boobs bade mast hai... Size main bhi baade hai, aur us par chote golai wali par nokdar pointed type ki red nipples, jab simi ko sex chadta hai tab nipples ki lamb[...]

  • Chupke Say Behan Ki Chudai Ki

    Chupke Say Behan Ki Chudai KiMera naam rohit hai aur punjab mein rehta hun meri umer 20 saal hain jo kahani mein aap sab ko batanay jaa raha hun woh 3 saal pehle ki kahani hain aur meray pariwaar mein 2 bhai, aur ek 18 saal ki behan hai, behan ka naam neetu hain, pita jee ke death ko 5 saal hogaye hai aur hum jaya[...]

  • Neend main bhabi ki chudai

    Neend main bhabi ki chudai Hello dosto , meri kahani tab ki hai jab main ba final me tha aur apni bhaya bhabi ke paas delhi main rehtha tha aur bhaiya noida main ek company main kaam karte the,bhabi dekhna main bahut hi sunder hai aur bhaiya se kafi pyaar bhi karthi hai aur main bhi unhe poori izzat deta hoo. Ek[...]

  • Maza aya maa ko chodne main - Hindi sex story

    Maza aya maa ko chodne main- Hindi sex story Yehi mere real stori hai Mera nam rameshwar hai main up main rahta hua main kisan ghar ka hun ghar main main aur mere do bahen aur maa rahnti hai . Pitazi ka dehant ho chukka hai main ghar main sabse bada hun meri umar 21 sal meri do bhaen ranjeeta aur sangeeta 17 aur 15[...]

  • Connect with Facebook
    Sponsors
    Search
    Categories
    Tag Cloud